(गत ब्लॉगसे आगेका)
(१३) तीनों गुणोंसे सभी मोहित
हैं (७ । १३);
तमोगुण सबको मोहित करनेवाला
है (१४ । ८)‒यह कैसे ?
सत्त्वगुणका स्वरूप निर्मल, रजोगुणका स्वरूप रागात्मक और तमोगुणका
स्वरूप मोहनात्मक कहा गया है । तात्पर्य है कि जहाँ तीनों गुणोंका भेद किया गया है, वहाँ तमोगुणका स्वरूप मोहनात्मक बताया
गया है । वास्तवमें तो सत्त्व, रज और तम‒ये तीनों ही गुण मोहित करनेवाले
हैं । सत्त्वगुण ज्ञान और सुखकी आसक्तिसे, रजोगुण कर्मोंकी आसक्तिसे और तमोगुण स्वरूपसे
ही मनुष्योंको मोहित करता है (१४ । ६-८) । अतः जो ऊँचा-से-ऊँचा ब्रह्मलोकतकका भी सुख
चाहता है,
वह भी गुणोंसे मोहित है ।
(१४) जिनका ज्ञान मायाके द्वारा
हरा गया है जिन्होंने आसुरभावका आश्रय ले रखा है, ऐसे दुराचारी (पापी) भगवान्की शरण नहीं
होते (७ । १५);
दुराचारी-से-दुराचारी भी भगवान्की
शरण होता है (९ । ३०)‒यह कैसे ?
जो वेद, शास्त्र, पुराण, भगवान् और उनके सिद्धान्तसे विरुद्ध चलनेवाला
है, दुर्गुणी है, दुराचारी है, ऐसे मनुष्यका स्वाभाविक भगवान्की तरफ
चलनेका,
भगवान्की शरण होनेका स्वभाव
नहीं होता । परंतु वह भी किसी कारणविशेषसे अर्थात् किसी संतकी कृपासे, किसी स्थान या तीर्थके प्रभावसे, किसी पूर्वपुण्यके उदय होनेसे अथवा किसी
विपत्तिमें फँस जानेसे भगवान्की शरण हो सकता है । तात्पर्य यह है कि सामान्य रीतिसे
तो पापी मनुष्य भगवान्की शरण नहीं होता (७ । १५), पर किसी कारणविशेषसे वह भगवान्की
शरण हो सकता है (९ । ३०) ।
(१५) परमात्मा अचिन्त्य है‒‘अचिन्त्यम्’, उसका जो चिन्तन (स्मरण)
करता है‒‘अनुस्मरेत्’ (८ । ९), तो जो अचिन्त्य
है, उसका चिन्तन कैसे ? और जिसका चिन्तन होता है, वह अचिन्त्य कैसे ?
यद्यपि वह परमात्मा चिन्तनका
विषय नहीं है,
तथापि उस परमात्माका अभाव
नहीं है । वह परमात्मा भावरूपसे सब जगह परिपूर्ण है । अतः ‘वह परमात्मतत्त्व अचिन्त्य
है’‒ऐसी दृढ़ धारणा ही उस परमात्माका
चिन्तन है । तात्पर्य है कि यद्यपि वह परमात्मा चिन्तनका विषय नहीं है, तथापि चिन्तन करनेवाला उस तत्त्वको लक्ष्य
बना सकता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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