(गत ब्लॉगसे आगेका)
होश आया कि नहीं ? आप जरा सोचो । क्या कर रहे हो ? अगर ऐसा ही
करोगे तो दुःख पाओगे ! दुःख ! दुःख ! दुःख ! याद कर लो । और आज अगर इससे ऊँचे उठ जाओगे तो महान् आनन्द होगा । जो किसी जन्ममें
कभी नहीं हुआ, वह आनन्द होगा और सबको हो जायगा । जो ऊँचा उठ जायगा,
उसको महान् आनन्द होगा । जिन लोगोंने ऐसा किया है,
उनके आनन्द हुआ है,
होता है और होगा । होनेकी रीति है । यह बिलकुल हमारे हाथकी बात
है, कठिन बात नहीं है । इसमें किसीकी सहायताकी जरूरत नहीं है । सहायता करनेवाले भगवान्
सन्त, महात्मा, धर्म और शास्त्र सब हमारे साथमें हैं,
पर सुखी-दुःखीके साथ कोई नहीं है । घरवाले भी नहीं हैं । खास
माँ-बाप नहीं हैं । बेटा-बेटी नहीं है, लुगाई (स्त्री) आपके साथमें नहीं है, कोई आपके साथ नहीं है ।
ऐसी बेइज्जती कराते हो, मनुष्य होकर ऐसी फजीती कराते हो अपनी ! राम ! राम ! राम !
भगवान्ने अपनी प्राप्तिका अधिकार दिया । उस अधिकारको लेकर इतना
अनर्थ करते हो ? क्या दशा होगी । आज सुधर जाय, अभी-अभी सुधर सकते हैं । हम इन आने-जानेवाली चीजोंमें सुखी-दुःखी नहीं होंगे, बस
। केवल इतनी बात है, लम्बी-चौड़ी है ही नहीं । सुख-दुःख हो जाता है तो होने दो,
कोई पुरानी आदतसे हुआ है,
हम नहीं मानेंगे । उठाकर फेंक देंगे हम । आपमें वह ताकत है ।
आपमें वह सामर्थ्य है । भगवान् भी सहायता देनेके लिये तैयार हैं । साधु, सन्त,
महात्मा जितने हैं, सब हमारे पक्षमें हैं । सुखी-दुःखी होते
रहेंगे तो कोई हमारे पक्षमें नहीं होगा और तो कौन होगा ? आपका शरीर भी साथमें नहीं
रहेगा । कोई आपके साथ नहीं । इसमें कोई सन्देह हो तो बोलो । काम,
क्रोध, लोभ तभी आते हैं, जब आने-जानेवाली चीजसे आप अपनी उन्नति और अवनति मानते हो । आने-जानेवाली
चीजसे अगर सुखी-दुःखी नहीं होते तो काम और क्रोध कैसे आते,
बताओ ! होशमें आकर बोलो ! सिवा आने-जानेवाली चीजके और क्या है
ये काम, क्रोध और लोभ !
सच्ची बातके सामने कच्ची बात कैसे टिकेगी ? और दुःख ही पाना
है तो, अंगारोंमें हाथ दो । आने और जानेवाली चीजोंसे राजी और नाराज
न हो तो कौन-सा दोष रहेगा ! है ही नहीं कोई दोष । होशमें आकर बोलो ! खास मूल एक ही
बात है कि आने-जानेवालोंसे राजी-नाराज न होना । कहते हैं,
हमारे मिटता नहीं । बालकके भी मनकी बात नहीं होती तो बालक रो
पड़ता है । आपको रोना आता है कि नहीं ? आप जैसा चाहते हो,
वैसा नहीं होता तो नींद आती है कि नहीं ?
भूख लगती है कि नहीं ?
बात सुहाती है कि नहीं ?
मौजसे जीते हो, खाते-पीते हो, सो जाते हो, तब तो नहीं मिटेगा । और बेचैनी हो
जाय तो अभी मिट जायगी । टिक नहीं सकती । बेचैनी वशकी बात नहीं तो रोना तो आपके वशकी
बात है कि नहीं ! दुःखी होना वशकी बात है कि नहीं ? जहाँ वशकी बात नहीं होती तो वहाँ
रोता है आदमी । सच्ची है कि झूठी ?
अपना वश नहीं चलता,
वहाँ रोता है कि नहीं रोता है ?
आप तो कहते हैं कि रोना वशकी बात नहीं है, पर वास्तवमें रोना
बन्द होना वशकी बात नहीं है । बातें बनायी हैं बातें,
गहरे उतरे नहीं हो ! हमारे वशकी बात न हो और करना चाहते हैं
तो सुखी रह सकते हैं क्या ? कोई काट नहीं सकता इस बातको । किसीकी ताकत नहीं,
जो काट दे ! इतनी पक्की बात है एकदम सिद्धान्तकी ! आप विचार
करो, शान्तिसे विचारो । आने-जानेवाली चीजोंसे सुखी-दुःखी मत होवो । आप रहते हो,
चीजें आती-जाती हैं,
परिस्थितियाँ आती-जाती हैं । आप अलग हो,
आने-जानेवाली चीजें अलग हैं और वे एक रूप नहीं रह सकतीं तो राजी-नाराज
कैसे रह सकते हो ?
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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