(गत ब्लॉगसे आगेका)
गीताके देखनेसे पता लगता है‒
अहं हि सर्वयज्ञानां
भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥
(९ । २४)
सम्पूर्ण यज्ञोंका व तपोंका भोक्ता मैं हूँ और सबका मालिक मैं
हूँ, पर मेरेको नहीं जानते इस वास्ते पतन होता है । सब यज्ञों और तपोंका भोक्ता क्यों
? कि खाना-पीना, बैठना-उठना, सोना-जगना, चलना-फिरना, यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत, उपवास, होम, सत्संग, स्वाध्याय आदि जो करना,
केवल दुनिया मात्रके हितके लिये करना है । पाप, अन्याय नहीं करना है, केवल
सेवा करना है । जो काम करें, सेवाभावसे ही करें । भगवान्की आज्ञा मानकर करें
। भगवान् सब जगह है सज्जनो !
इतने मात्रसे सबका कल्याण हो जाय ! इतनी बात बहुत विलक्षणतासे जँच रही है । अभी गीता
लिखानेका काम पड़ता है, उसमें मेरेको बहुत विचित्र अर्थ दीखता है । ये सीधी-सी बात,
कुछ उद्योग नहीं करना है । भगवत्प्राप्तिके
लिये उद्योगकी, कोई नये कामकी जरूरत नहीं है । निषिद्ध काम कोई न
करें, विहित काम करें और मात्र दुनियाके हितके लिये करें
। तो ‘ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः’ (गीता
१२ । ४) । प्राणिमात्रके
हितमें केवल रत हो तो मेरेको प्राप्त हो जायगा,
इसमें सन्देह नहीं । किस रूपकी प्राप्ति होगी ?
तो कहते हैं ‘ते प्राप्नुवन्ति मामेव’
सगुण रूपकी प्राप्ति कहते हैं और कोई निर्गुण-निराकार ब्रह्मकी
प्राप्ति चाहते हो, तो कहते हैं‒
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः ।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥
(गीता
५ । २५)
प्राणिमात्रके हितमें रति करनी है और कुछ नहीं करना है,
केवल सेवा करनी है । केवल इतना ही कि जो काम करें,
खाना-पीना, सोना-उठना, जप-तप-ध्यान, तीर्थ-समाधि आदि करना,
केवल सबकी सेवा करनेके लिये । इस भावसे, इतनी ही बात है ।
ध्यान देकर आपलोग सुनें,
बहुत मार्मिक बात है,
आप ख्याल कम करते है; क्योंकि
मैंने ख्याल कम किया है, इस वास्ते मैं जानता हूँ । ख्याल कम करता है आदमी । यह मेरेपर ही लगाता है ।
केवल अपने स्वार्थका त्याग और दूसरोंके हितके लिये काम करना
है । अपने लिये कुछ भी काम हम करते हैं तो उस कामका आरम्भ होता है और उस कामकी समाप्ति
होती है । आदि और अन्त होता है तो उससे मिलनेवाला फल है,
वो निरन्तर रहनेवाला कैसे मिलेगा ?
आदि और अन्तवाला ही मिलेगा । हम अपने लिये कुछ करेंगे तो आदि
और अन्तवाला ही फल मिलेगा । आदि-अन्तवाली क्रिया होगी और आदि-अन्तवाला ही फल मिलेगा
।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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