(गत ब्लॉगसे आगेका)
अब इसमें थोड़ी-सी बात समझें । जैसे अग्निका ढेर हो,
उसमें एकदम पानी डाल दिया जाय । तो पानी डालनेसे अग्नि तो बुझ
जायगी; परन्तु उस समय उसके भीतर कोई हाथ रख दे तो हाथ जल जायगा,
फफोले हो जायेंगे । अग्नि तो बिलकुल नहीं है उसमें;
परन्तु हाथ रख दें तो हाथ जल जायगा । सिद्ध क्या हुआ ?
अग्नि तो बुझ गयी, पर अग्निका प्रभाव नष्ट नहीं हुआ । उसके नष्ट होनेमें देरी लगेगी
। अग्निके बुझनेमें देरी नहीं लगी, ऐसे ही वृक्ष काट दिया जाय,
जड़से काटकर अलग कर दिया जाय । वह तो कट ही गया,
अब पीछा हरा हो नहीं सकता;
परन्तु उसकी जो पत्तियाँ है,
वह कई दिनोंतक गीली रहेंगी,
पतली टहनीकी पत्तियाँ जल्दी सूख जायँगी;
परन्तु हरी टहनीकी पत्तियाँ जल्दी नहीं सूखेंगी । पेड़के पास
अगर पाँच, दस पत्तियाँ हों, वह कई दिनों-तक नहीं सूखेंगी । तो इनके न सूखनेपर भी वृक्ष हरा
नहीं होगा । एक बार कट गया तो कट ही गया । इसी तरहसे ही असत्के साथ हमारा सम्बन्ध
नहीं है उसको काट दो ।
परमात्माके साथ हमारा नित्य-सम्बन्ध है, उसको मान लो । न मानो
तो एक ही कर लो । परमात्माके साथ सम्बन्धको अभी रहने दो । संसारके साथ सम्बन्ध हमारा
है ही नहीं । इसको काट दो, बिलकुल नहीं है । कितना ही आपको दीखे । कितना ही आपपर असर हो
जाय । कितनी ही वृत्तियाँ खराब हो जायँ तो भी इस निर्णयको मत छोड़ो । इसके साथ हमारा
सम्बन्ध नहीं है । जैसे पेड़ कटनेपर भी पत्ती हरी रहती है,
ऐसे पुराने प्रभावसे असर पड़ जाय,
वृत्तियाँ भी खराब हो जायँ तो भी इनसे घबराओ नहीं । उसमें समय
लगेगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
|