(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒मनुष्यऋण क्या है और उससे
छूटनेका उपाय क्या है ?
उत्तर‒बिना किसीकी सहायता लिये हमारा जीवन-निर्वाह नहीं होता । हम दूसरोंके बनाये हुए रास्तेपर
चलते हैं, दूसरोंके बनाये हुए कुएँका पानी काममें लेते हैं, दूसरोंके लगाये हुए
पेड़-पौधोंको काममें लेते हैं, दूसरोंके द्वारा उत्पन्न किये हुए अन्न आदि खाद्य
पदाथोंको काममें लेते हैं‒यह उनका हमपर ऋण है । दूसरोंकी
सुख-सुविधाके लिये कुआँ खुदवानेसे, प्याऊ लगानेसे, बगीचा लगानेसे, रास्ता
बनवानेसे, धर्मशाला बनवानेसे, अन्न-क्षेत्र चलानेसे हम मनुष्यऋणसे मुक्त हो सकते
हैं ।
पितृऋण, देवऋण, ऋषिऋण, भूतऋण और
मनुष्यऋण‒ये पाँचों ऋण गृहस्थपर ही लागू होते हैं । जो
भगवान्के सर्वथा शरण हो जाता है, वह पितर, देवता आदि किसीका भी ऋणी नहीं रहता,
सभी ऋणोंसे छूट जाता है ।
प्रश्न‒यदि कोई संतान न हो तो
अपने सम्बन्धियोंके अथवा अनाथ बालक-बालिकाओंको गोद लेना चाहिये या नहीं ?
उत्तर‒आजकलके जमानेमें गोद न लेना ही अच्छा है; क्योंकि अपना पैदा
किया हुआ बेटा भी सेवा नहीं करता, आज्ञा नहीं मानता तो गोद लिया हुआ बेटा क्या
निहाल करेगा ! यद्यपि पिण्ड-पानी देनेके लिये गोद लेनेका विधान तो है, पर वह पिण्ड-पानी ही
नहीं देगा तो उसको गोद लेना किस कामका ? यदि हमारे लिये
लड़केकी आवश्यकता होती तो भगवान् दे देते । हमारे लिये लड़केकी आवश्यकता नहीं है,
इसलिये भगवान्ने नहीं दिया है । अतः हम गोद लेकर अपने लिये आफत क्यों पैदा करें !
प्रायः ऐसा देखा गया है कि गोद लिये हुए लड़के माँ-बापको दुःख-ही-दुःख देते हैं, उनकी
सेवा नहीं करते । अतः अनाथ बालकोंको पढ़ाना चाहिये, उनकी सेवा करनी चाहिये, उनके
शरीर-निर्वाहका प्रबन्ध करना चाहिये ।
प्रश्न‒अगर कोई बेटा नहीं होगा तो
वृद्धावस्थामें हमारी सेवा कौन करेगा ?
उत्तर‒जिनके बेटे हैं, क्या वे सभी अपने माँ-बापकी सेवा करते हैं ? आजकलके बेटे तो
माँ-बापकी धन-संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं और श्राद्ध-तर्पणको फालतू समझते
हैं तो ऐसे बेटे क्या सेवा करेंगे ? वे तो केवल दुःखदायी होते हैं । वास्तवमें प्रारब्धसे जैसी सेवा बननेवाली है, जितना सुख-आराम
मिलनेवाला है, वह तो मिलेगा ही, चाहे पुत्र हो या न हो । हमने यह प्रत्यक्ष
देखा है कि विरक्त सन्तोंकी जीतनी सेवा होती है, उतनी सेवा गृहस्थोंके बेटे नहीं
करते । तात्पर्य है कि बेटा होनेसे ही सेवा होती है, यह बात नहीं है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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