(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒यदि किसीके माता-पिता (पितर) मुक्त हो गये हैं,
भगवद्धाममें चले गये हैं तो उनके नामसे दिए हुए पिण्ड-पानीका क्या होगा ?
उत्तर‒पुत्रको यह पता नहीं रहता कि मेरे माता-पिता मुक्त हो गये, भगवद्धाममें चले
गये, पर वह उनके नामसे आदरपूर्वक जो पिण्ड-पानी देता है, दान-पुण्य करता है, वह सब
उसके नामपर जमा हो जाता है और मरनेके बाद उसीको मिल जाता है । जैसे, हम किसीके
नामसे बम्बई पैसे भेजते हैं, पर वह व्यक्ति वहाँ नहीं है तो वे पैसे वापिस हमें ही
मिल जाते हैं ।
प्रश्न‒क्या संतान उत्पन्न किये बिना भी मनुष्य पितृऋणसे छूट
सकता है ?
उत्तर‒हाँ, छूट सकता है । जो भगवान्के सर्वथा शरण हो जाता है, उसपर कोई भी ऋण नहीं
रहता‒
देवर्षिभूताप्तनृणां पितॄणां न किङ्करो
नायमृणी च राजन् ।
सर्वात्मना यः शरणं शरण्यं गतो मुकुन्दं
परिहृत्य कर्तम् ॥
(श्रीमद्भा॰ ११ । ५ । ४१)
‘राजन् ! जो सारे कार्योंको छोड़कर सम्पूर्णरूपसे
शरणागतवत्सल भगवान्की शरणमें आ जाता है, वह देव, ऋषि, प्राणी, कुटुम्बीजन और
पितृगण इनमेंसे किसीका भी ऋणी और सेवक (गुलाम) नहीं रहता ।’
प्रश्न‒देवऋण क्या है और उससे छूटनेका उपाय क्या है ?
उत्तर‒वर्षा होती है, घाम तपता है, हवा चलती है, पृथ्वी सबको धारण करती है,
रात्रिमें चन्द्रमा और दिनमें सूर्य प्रकाश करता है, जिससे सबका जीवन-निर्वाह चलता
है–यह सब हमपर देवऋण है । हवन, यज्ञ करनेसे देवताओंकी पुष्टि होती है और हम
देवऋणसे मुक्त हो जाते हैं ।
प्रश्न‒ऋषिऋण क्या है और उससे छूटनेका उपाय क्या है ?
उत्तर‒ऋषि-मुनियोंने, सन्त-महात्माओंने जो ग्रन्थ बनाये हैं, स्मृतियाँ बनायी हैं, उनसे
हमें प्रकाश मिलता है; अतः उनका हमपर ऋण है । उनके ग्रन्थोंको पढ़नेसे, स्वाध्याय
करनेसे, पठन-पाठन करनेसे, संध्या-गायत्री करनेसे हम ऋषिऋणसे मुक्त हो जाते हैं ।
प्रश्न‒भूतऋण क्या है और उससे छूटनेका उपाय क्या है ?
उत्तर‒गाय-भेंस, भेड़-बकरी, ऊँट-घोड़ा आदि जितने प्राणी हैं, उनसे हम अपना काम चलाते
हैं, अपना जीवन-निर्वाह करते हैं । वृक्ष-लता आदिसे फल, फूल, पत्ती, लकड़ी आदि लेते
हैं । यह हमपर दूसरोंका, प्राणियोंका ऋण है । पशु-पक्षियोंको घास, अन्न आदि
देनेसे, जल पिलानेसे, वृक्ष-लता आदिको खाद और जल देनेसे हम इस भूतऋणसे मुक्त हो
जाते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’
पुस्तकसे
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