(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सच्ची बात मैंने सुनी है । मेरे पास पक्का प्रमाण
नहीं है, पर मैंने सुना है कि सौ वर्षोंमें हिन्दू नष्ट हो
जायँ‒ऐसी एक दुरभिसन्धि है । जितने मरेंगे, उतने
तो कम होंगे ही, नसबंदी, ऑपरेशन
आदि करानेसे हिन्दू और कम हो जायेंगे और सौ वर्षोंतक सब नष्ट हो जायँगे‒ऐसा विचार हो
गया है । उसी स्कीमको आप काममें ले रहे हो ! मेरेको कई साधुओंने कहा कि ये बातें आप क्यों कहते हो ?
यह काम तो गृहस्थोंका है । परन्तु विचार करें,
गृहस्थोंमेंसे ही तो साधु होते हैं । हिन्दू गृहस्थ नहीं रहेंगे
तो फिर साधु कौन होगा ? गीता, रामायण आदि ग्रन्थ कौन पढ़ेगा ?
क्या ईसाई और मुसलमान पढ़ेंगे ?
आज खेतीके लिये मजदूर नहीं मिलते । मिलें भी कैसे
? गर्भ गिराकर, ऑपरेशन
करके, नसबंदी करके आदमियोंको नष्ट कर दिया । खेती करनेवाले कहते हैं कि मजदूरोंको चालीस-पचास रुपया प्रतिदिन
और कारीगरोंको डेढ़-दो सौ रुपया प्रतिदिन देना पड़ता है । अगर आपके घर बालकोंकी कमी न
हो तो दूसरोंको इतना रुपया क्यों देना पड़े ?
अगर घरमें दस बालक हों,
वे अगर काम करें तो चालीस रुपयेके हिसाबसे चार सौ रुपये रोजाना
आयेंगे । अन्न इतना महँगा तो है नहीं कि वे चार सौ रुपयेका अन्न रोजाना खा जायँ ! अगर
चार सौ रुपयोंमेंसे दो सौ रुपयेका अन्न खा लें,
तो भी दो सौ रुपये बचते हैं ! दूसरी बात,
घरके आदमी जितना काम करेंगे,
उतना काम मजदूर नहीं करेंगे ।
सारा अन्न इकट्ठा करनेपर बस,
इतना ही है, अब ज्यादा आदमी पैदा हो जायँगे तो उनके हिस्सेमें थोड़ा-थोड़ा
ही आयेगा‒यह बात है ही नहीं ! जहाँ आदमी ज्यादा होंगे, वहाँ
अन्न भी ज्यादा होगा । जहाँ वृक्ष ज्यादा होते हैं, वहाँ
वर्षा भी ज्यादा होती है । आवश्यकता आविष्कारकी जननी है । भगवान्के यहाँ कोई अँधेरा
नहीं है । आप थोड़े-से लोभमें आकर बड़ा भारी पाप, अन्याय
और नाश (भ्रूणहत्या) कर रहे हो ! खेतीमें तो ज्यादा पैदा करनेकी चेष्टा करते हो और आदमियोंका नाश करनेकी चेष्टा
करते हो । पर विचार करो कि खेती किसके काम आयेगी ?
इकट्ठा किया हुआ धन किसके काम आयेगा ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
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