(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक आदमीके पास पाँच रुपये हैं । कहीं भूखी गायोंके लिये देनेका
काम पड़ जाय तो वह उन पाँच रुपयोंमेंसे एक रुपया सुखपूर्वक दे देगा । क्या ऐसे सुखपूर्वक
सौ रुपयोंवाला बीस रुपये दे देगा ? हजार रुपयोंवाला दो सौ रुपये दे देगा ?
लाख रुपयोंवाला बीस हजार रुपये दे देगा ? तंग करनेपर,
दुःख देनेपर भी नहीं देगा,
सुखपूर्वक तो क्या देगा वह ?
पाँच रुपयोंवाला एक रुपया देता है तो उसके निर्वाहमें तंगी आ
जायगी; परन्तु लाख रुपयोंवाला बीस हजार रुपये देता है तो उसके निर्वाहमें
तंगी नहीं आयेगी; क्योंकि पीछे अस्सी हजार रुपये पड़े हैं । अतः गरीबके दानके समान
धनीका दान नहीं हो सकता । भगवान्के यहाँ रुपयोंकी गिनती नहीं देखी जाती ।
सत्त सारु दत्त बाँटिये, ‘नापो’ कहत नरां ।
शक्तिके अनुसार दान करना चाहिये,
तो क्या धनवान् शक्तिके अनुसार दान करते हैं ?
लोग गिनती देखते हैं कि किसने ज्यादा दिया । वास्तवमें गिनतीमें
जिसने ज्यादा दिया, वह दानी नहीं है । दानी वह है,
जो साधारण स्थितिमें भी दान कर देता है । पासमें एक रोटी है
और उसमेंसे आधी रोटी दे देता है, वह दानी है । पासमें बहुत पड़ा है,
उसमेंसे लाख-दो-लाख दे दिया तो क्या दे दिया ?
जितना छोटेका दान होता है,
उतना बड़ेका दान नहीं होता । अन्याय
भी बड़े आदमी ही करते हैं । बाजार-का-बाजार महँगा कर देते हैं । माल खरीदकर एक
जगह कर लेते हैं, फिर महँगा करके बेचते हैं । अपने हाथमें सारा माल आ गया,
अब वे चाहे जो करें । ऐसे-ऐसे अनर्थ करते हैं वे ! मैं आपको दुःखी करनेकी नीयतसे यह बात नहीं कहता हूँ, प्रत्युत
सदाके लिये सुखी करनेकी नीयतसे, नरकोंके महान् दण्डसे बचानेके लिये यह बात कहता हूँ
। यदि आप अन्यायपूर्वक धन न कमाओ, दूसरोंका दिल न दुखाओ तो आप सदाके लिये सुखी हो जाओगे
।
यह भ्रूणहत्या क्यों होती है ?
इन धनी आदमियोंके कारणसे,
क्योंकि दहेज ज्यादा माँगते हैं । बहनोंको मिठाई,
फल आदि सामान ज्यादा चाहिये और भाइयोंको रुपये ज्यादा चाहिये
। यह भूख बड़ी खराब है ! किसी तरहसे इस भूखको मिटाओ ! बहू मिठाई कम लाती है तो सास कहती
है कि इतना-सा लायी है, मेरा बड़ा परिवार है,
किस-किसको दें ! इस तरह वह बहू और उसकी माँकी निन्दा करती है
। कोई दिन सासका है तो कोई दिन बहूका भी आयेगा,
तब देखना तमाशा ! फिर कहेंगे कि बहू कहना नहीं मानती ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे
[*] ‘नापो कवि कहते हैं कि मनुष्यो ! अपनी शक्तिके अनुसार दान दो
। घरमें अभाव देखकर किसीको साफ ‘ना’ मत कहो,
प्रत्युत कुछ-न-कुछ दो ।
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