(गत ब्लॉगसे आगेका)
आपने बहूका कितना आदर किया ?
वह मिठाई ज्यादा लेकर आये‒इस लोभसे उसका कितना तिरस्कार किया
? अगर मिठाई कम है तो इसे लोगोंसे मत कहो । इसे छिपाओ,
किसीके कानमें मत पड़ने दो और ठीक वैसी मिठाई घरमें बनाओ । फिर
वह मिठाई मिलाकर सभीको बाँटो कि बेटेके ससुरालसे मिठाई आयी है । आप कहेंगे कि बाबाजी
! कहनेमें जोर नहीं आता; ऐसा करनेमें रुपये लगते हैं ! हम कहते हैं कि चालीस-पचास,
सौ रुपये ही तो लगे,
पर सौ रुपयोंमें बहू खरीदी गयी,
बहू तुम्हारी हो गयी ! बहूपर इस बातका कितना असर पड़ेगा कि मेरी
माँकी महिमाके लिये सासने मिठाई घरपर बनाकर बाँटी ! सौ रुपयोंमें एक आदमी खरीदा जाय
तो सस्ता ही है, महँगा क्या है ? पर यह होगा लोभ छोड़नेसे । लोभ नरकोंका
दरवाजा है (गीता १६ । २१), इसका त्याग करो । लोभमें महान् पाप है । लोभी आदमी
अन्धा हो जाता है, देख नहीं सकता ।
लोभके कारण दहेज आदि देनेसे बचनेके लिये कन्याका
गर्भ गिरा देना नारी-जातिका घोर अपमान है । कन्याका जन्म होता है तो बूढ़ी माताएँ कहती हैं‒‘भाटो (पत्थर)
आयो है, भाटो’ ! अब, उनसे पूछो कि
जब तुम आयी थी, तब रत्न आया था क्या ?
तुम भी तो भाटो ही थी ! आज दादी-माँ बन गयी तो अब कन्याका तिरस्कार
करती हो ! कन्याका दान होता है, उत्सव होता है । कन्यादानके दिन माता-पिता भूखे रहते हैं और
कन्यादान (विवाह) होनेके बाद भोजन करते हैं । कन्यादान कोई
मामूली दान नहीं है । इससे अगलेके वंशकी वृद्धिके लिये नींव डाल दी है । जिससे
उसका वंश बड़े, ऐसी अपनी प्यारी पुत्री लक्ष्मीरूप कन्याको विष्णुरूप वरको देते
हैं‒‘विष्णुरूपाय वराय सालङकारां सवस्त्रां लक्ष्मी- रूपिणीं
कन्या सम्प्रददे’ । ऐसी कन्याकी गर्भमें ही हत्या कर देना बड़ा भारी भयंकर पाप है । आपलोगोंसे यह प्रार्थना है कि गर्भमें चाहे कन्या हो, या लड़का
हो, उसको गिराओ मत, उसकी
हत्या मत करो । एक बात और ध्यान
देकर सुनो । कन्या आयेगी तो अपना भाग्य लेकर आयेगी । वह आपके भाग्यके भरोसे नहीं आयेगी
। ऐसी बात देखनेमें भी आती है । एकने मुझे बताया कि एक बार व्यापारमें ज्यादा रुपये
पैदा हो गये । जब कन्याकी शादी की, तब आना-पाईसहित उतने रुपये लग गये ! अतः कन्याके भाग्यका अपने-आप आयेगा, आप घबराओ
मत । पहले कठिनता दीखती है, पर समयपर ठीक तरहसे विवाह हो जाता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे
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