(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप कन्याओंका गर्भ गिरा दोगे तो लड़कोंका विवाह कहाँ करोगे ?
ब्राह्मणोंका ब्राह्मणोंमें,
क्षत्रियोंका क्षत्रियोंमें अनादिकालसे विवाह होता आया है और
लड़का-लड़की दोनों जन्मते आये हैं । कन्याएँ पैदा न हों तो
वंश नष्ट हो जाय । राजपूतोंमें टीकेकी रीति (दहेज-प्रथा) ज्यादा होने लगी तो
उन्होंने कन्याओंको मारना शुरू कर दिया । इस कारण उनके वंश नष्ट हो गये । भागवत आदिमें
जितने राजपूतोंकी कथा आती है, उतने राजपूत आज देखनेमें नहीं आते । थोड़ा-सा विचार तो करो ।
कन्याकी हत्यासे बड़ा भारी अनर्थ होगा ! कन्याका जन्म
रोकनेके लिये तो गर्भपात करते हो और विधवाओंका विवाह शुरू करना चाहते हो ! विधवाएँ
तैयार हो जायँगी तो कन्याओंको वर कैसे मिलेंगे ?
पहले ही कन्याओंका विवाह नहीं हो रहा है,
फिर विधवाओंको और तैयार कर लिया ! विधवा-विवाह शास्त्रकी रीतिसे
भी निषिद्ध है । पितृ-ऋणसे मुक्त होनेके लिये सन्तान पैदा करनेकी जिम्मेवारी पुरुषपर
है । स्त्रीपर कोई जिम्मेवारी नहीं है । पुरुष भी यदि सुख-लोलुपतासे दूसरा विवाह करता
है तो वह पाप करता है । जो बिना विवाह किये भोगोंका त्याग नहीं कर सकता,
उसीके लिये विवाह करनेका विधान है । विवाह करना कोई बड़ा काम
नहीं है । त्यागकी जितनी महिमा है, उतनी
भोगोंकी महिमा कभी हुई नहीं, हो सकती नहीं, सम्भव
ही नहीं है । फिर कहते हैं कि
विधवाका विवाह होना चाहिये ! विधवाका विवाह हो सकता ही नहीं । विवाह संज्ञा ही उसकी
होती है, जिसमें कन्यादान होता है । अब विधवाका दान कौन करे ?
विधवा-विवाह वास्तवमें विवाह है ही नहीं । यह तो
एक नाता है, जो कुत्ता-कुतियामें, गधा-गधीमें
भी होता है ! यह कोई आदरकी, आदर्शकी बात थोड़े ही है ! परन्तु आज लोग कहते हैं कि विधवाओंका विवाह होना चाहिये । ऐसे
ही साधु भी मिलकर कहेंगे कि साधुओंका भी विवाह होना चाहिये,
तो क्या दशा होगी ! संयम रखनेकी कुछ तो जगह रखो । कृपा करके
ठीक रास्तेपर आ जाओ ।
प्रश्न‒क्या
दहेज लेना पाप है ?
उत्तर‒हाँ, पाप है ।
प्रश्न‒अगर
पाप है तो फिर शास्त्रोंमें इसका विधान क्यों है ?
उत्तर‒शास्त्रोंमें केवल दहेज देनेका विधान है, लेनेका
विधान नहीं है । दहेज लेना नहीं
चाहिये और न लेनेकी ही महिमा है । कारण कि दहेज देना तो हाथकी बात है,
पर दहेज लेना हाथकी बात नहीं है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे
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