(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒घरमें चूहे, छिपकली, मच्छर, खटमल आदि जीवोंके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये ?
उत्तर‒घरमें रहनेवाले
चूहे आदिको भी अपने घरका सदस्य मानना चाहिये; क्योंकि वे भी अपना घर बनाकर हमारे
घरमें रहते हैं । अतः उनका भी हमारे घरमें रहनेका अधिकार है । तात्पर्य है कि अपनी
रक्षा करते हुए जहाँतक बने, उनका भी पालन करना चाहिये । परन्तु आजकल लोग उनको मार
देते हैं, यह ठीक नहीं है
। मनुष्यको अपनी रक्षा करनेका ही अधिकार है, किसीको
मारनेका अधिकार नहीं है । जैसे मनुष्य पृथ्वीपर अपना घर बनाकर
रहता है, ऐसे ही चूहे आदि
भी अपना घर बनाकर रहते हैं; अतः उनको मारना नहीं चाहिये । घरमें साँप, बिच्छू आदि जहरीले
जीव हों तो उनको युक्तिसे पकड़कर घरसे दूर सुरक्षित स्थानपर छोड़ देना चाहिये ।
अपनी
सफाई न रखनेसे, अशुद्धि रखनेसे ही मच्छर, खटमल
आदि पैदा होते हैं । अतः घरमें पहलेसे ही स्वच्छता, निर्मलता
रखनी चाहिये, जिससे वे पैदा हों ही नहीं । स्वच्छता
रखते हुए भी वे पैदा हो जायँ तो भी उनको मारनेका हमें अधिकार नहीं है ।
प्रश्न‒घरमें कुत्ता
पालना चाहिये या नहीं ?
उत्तर‒घरमें
कुत्ता नहीं रखना चाहिये । कुत्तेका पालन करनेवाला नरकोंमें जाता है । महाभारतमें आया
है कि जब पाँचों पाण्डव और द्रौपदी वीरसंन्यास लेकर उत्तरकी ओर चले तो चलते-चलते भीमसेन
आदि सभी गिर गये । अन्तमें जब युधिष्ठिर भी लड़खड़ा गये, तब इन्द्रकी आज्ञासे
मातलि रथ लेकर वहाँ आया और युधिष्ठिरसे कहा कि आप इसी शरीरसे स्वर्ग पधारी । युधिष्ठिरने
देखा कि एक कुत्ता उनके पास खड़ा है । उन्होंने कहा कि यह कुत्ता मेरी शरणमें आया है; अतः यह भी मेरे
साथ स्वर्गमें चलेगा । इन्द्रने युधिष्ठिरसे कहा‒
स्वर्गे लोके
श्ववतां नास्ति धिष्ण्यमिष्टापूर्तं क्रोधवशा हरन्ति ।
ततो विचार्य क्रियतां
धर्मराज त्यज श्वानं नात्र नृशंसमस्ति ॥
(महाभारत, महाप्र॰ ३
। १०)
‘धर्मराज ! कुत्ता रखनेवालोंके लिये स्वर्गलोकमें स्थान नहीं है । उनके यज्ञ करने
और कुआँ, बावड़ी आदि बनवानेका जो पुण्य होता है, उसे क्रोधवश नामक राक्षस हर लेते हैं । इसलिये सोच-विचारकर काम करो और इस कुत्तेको
छोड़ दो । ऐसा करनेमें कोई निर्दयता नहीं है ।’
युधिष्ठिरने कहा
कि मैंने इसका पालन नहीं किया है, यह तो मेरी शरणमें आया है । मैं इसको अपना आधा पुण्य देता
हूँ, इसीसे यह मेरे
साथ चलेगा । युधिष्ठिरके ऐसा कहनेपर उस कुत्तेमेंसे धर्मराज प्रकट हो गये और बोले कि
मैंने तेरी परीक्षा ली थी । तुमने मेरेपर विजय कर ली, अब चलो स्वर्ग
!
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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