(गत ब्लॉगसे आगेका)
पड़ोसीकी कोई गाय-भैंस
घरपर आ जाय तो पड़ोसीसे झगड़ा न करे और उन पशुओंको पीटे भी नहीं, प्रत्युत प्रेमपूर्वक
पडोसीसे कह दे कि ‘भैया ! तुम्हारी गाय-भैंस हमारे घरपर आ गयी है । वह फिर न आ जाय, इसका खयाल रखना
।’ हम ऐसा सौम्य
बर्ताव करेंगे तो हमारी गाय-भैंस पड़ोसीके यहाँ जानेपर वह भी ऐसा ही बर्ताव करेगा ।
यदि पड़ोसी क्रूर बर्ताव करे तो भी हमारेको उसपर क्रोध नहीं करना चाहिये, प्रत्युत इस बातकी
विशेष सावधानी रखनी चाहिये कि हमारी गाय-भैंस आदिसे पड़ोसीका कोई नुकसान न हो ।
हमारे घर कोई
उत्सव हो, विवाह आदि हो
और उसमें बढ़िया-बढ़िया मिष्ठान्न आदि बने तो उसको पड़ोसीके बालकोंको भी देना चाहिये; क्योंकि पड़ोसी
होनेसे वे हमारे कुटुम्बी ही हैं । इससे भी अधिक प्रेमका बर्ताव करना हो तो जैसे अपनी
बहन-बेटीके विवाहमें देते हैं, ऐसे ही पड़ोसीकी बहन-बेटीके विवाहमें भी देना चाहिये; जैसे अपने दामादके
साथ बर्ताव करते हैं, ऐसे ही पड़ोसीके दामादके साथ भी बर्ताव करना चाहिये ।
प्रश्न‒नौकरके साथ
कैसा व्यवहार करना चाहिये ?
उत्तर‒नौकरके
साथ अपने बालककी तरह बर्ताव करना चाहिये । नौकर दो तरहसे रखा जाता है‒(१)
नौकरको तनखाह भी देते हैं और भोजन भी । (२) नौकरको केवल तनखाह देते हैं, भोजन वह अपने
घरपर करता है । जो नौकर तनखाह भी लेता है और भोजन भी करता है, उसके साथ भोजनमें
विषमता नहीं करनी चाहिये । प्रायः घरोंमें नौकरके लिये तीन नम्बरका, घरके सदस्योंके
लिये दो नम्बरका और अपने पति-पुत्रके लिये एक नम्बरका भोजन बनाया जाता है तो यह तीन
तरहका भोजन न बनाकर एक तरहका ही भोजन बनाना चाहिये । भोजन मध्यम दर्जेका बनाना चाहिये
और सबको देना चाहिये । समयपर कोई भिक्षुक आ जाय तो उसको भी देना चाहिये ।
जो नौकर केवल
तनखाह लेता है, भोजन नहीं करता, वह जैसा उचित समझे, बनाये और खाये । परन्तु हमारे घरपर
कभी विशेषतासे मिठाई आदि बने तो नौकरके बाल-बच्चोंको देनी चाहिये । विवाह आदिमें उसको
कपड़े आदि देने चाहिये । उसको तनखाह तो यथोचित ही देनी चाहिये, पर समय-समयपर
उसको इनाम, कपड़ा, मिठाई आदि भी
देते रहना चाहिये । अधिक तनखाहका उतना असर नहीं पड़ता, जितना
इनाम आदिका असर पड़ता है । नौकरको इनाम आदि देनेसे देनेवालेके हृदयमें उदारता आती है
और आपसमें प्रेम बढ़ता है, जिससे वह समयपर
चोर-डाकू आदिसे हमारी रक्षा भी करेगा; विवाह
आदिके अवसरपर वह उत्साहसे काम करेगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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