(यदि
यह लेख आपके मनके अनुकूल न भी पड़े तो भी कम-से-कम एक बार तो अवश्य ही मनोयोगपूर्वक
पढ़नेकी कृपा करें‒यह प्रार्थना है ।)
जनसंख्या-वृद्धिको रोकनेके लिये सरकारने परिवार-नियोजन कार्यक्रम
चला रखा है, जिसके अन्तर्गत वह गर्भाधानको रोकनेके लिये अथवा गर्भपात-जैसे
महापापको करनेके लिये लोगोंको प्रोत्साहित कर रही है । इसके लिये
वह नये-नये उपायोंकी खोज करके उनका व्यापक स्तरपर
प्रचार एवं प्रसार कर रही है । सरकारका
यह कार्यक्रम कहाँतक उचित है‒इसपर कुछ विचार किया रहा है‒
परिवार-नियोजन-कार्यक्रमके प्रचार एवं प्रसारके कारण
परिवार-नियोजन-कार्यक्रमका आरम्भ सर्वप्रथम उन पश्चिमी देशोंमें
हुआ था, जो ईश्वर, धर्म और परलोकसे प्रायः अनभिज्ञ हैं । वहाँके लोगोंने यह विचार
किया कि हमारी जनसंख्या जिस गतिसे बढ़ रही है,
उसको देखते हुए भविष्यमें हमें भरपेट खानेको नहीं मिलेगा,
रहनेके लिये पर्याप्त जगह नहीं मिलेगी,
हमारा जीवन-निर्वाह कठिन हो जायगा,
हमारा जीवन- स्तर गिर जायगा आदि । उन्होंने
जनसंख्याकी वृद्धिकी ओर तो देखा,
पर इस ओर नहीं देखा कि जनसंख्या-वृद्धिके साथ-साथ
जीवन-निर्वाहके साधनोंकी भी वृद्धि होती है; क्योंकि
आवश्यकता ही आविष्कारकी जननी है । फलस्वरूप परिवार-नियोजन-कार्यक्रमसे जीवन-निर्वाहके साधनोंमें तो वृद्धि नहीं
हुई, पर ऐसी अनेक बुराइयोंकी वृद्धि अवश्य हुई,
जिनसे समाजका घोर पतन हुआ !
वास्तवमें जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी होनेका कारण
जनसंख्याकी वृद्धि नहीं है, प्रत्युत अपने सुखभोगकी इच्छाओंकी वृद्धि है । भोगेच्छाकी
वृद्धि होनेसे मनुष्य आरामतलब और अकर्मण्य हो जाता है, जिससे
वह जीवन-निर्वाहके साधनोंका उपभोग तो अधिक करता है, पर
उत्पादन कम करता है । इससे जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी आने लगती है । इतना ही नहीं, अपनी इच्छाओंकी पूर्तिके लिये मनुष्य तरह-तरहके पाप करने लगता
है, जिनमें गर्भपात आदि संतति-निरोधके उपाय भी शामिल हैं । गीताने काम अर्थात् भोगेच्छाको
सम्पूर्ण पापोंका मूल बताया है‒
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥
(३ । ३७)
‘रजोगुणसे उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है । यह
बहुत खानेवाला और महापापी है । इस विषयमें तू इसको ही वैरी जान ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे
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