(गत ब्लॉगसे आगेका)
परिवार-नियोजन नारी-जातिका घोर अपमान है; क्योंकि
इससे नारी-जाति केवल भोग्या बनकर रह जाती है । कोई आदमी वेश्याके पास जाता है तो क्या वह सन्तान-प्राप्तिके
लिये जाता है ? अगर कोई आदमी स्त्रीसे सन्तान नहीं चाहता,
प्रत्युत केवल भोग करता है तो उसने स्त्रीको वेश्या ही तो बनाया
! यह क्या नारी-जातिका सम्मान है ? नारी-जातिका सम्मान तो माँ बननेसे ही है, भोग्या
बननेसे कभी नहीं । अगर स्त्री ऑपरेशन
आदिके द्वारा अपनी मातृशक्तिको नष्ट कर देती है तो वह पैरकी जूतीकी तरह केवल भोग्य
वस्तु रह जाती है । यह नारी-जातिका कितना बड़ा अपमान है निरादर है !
प्रश्न‒जिसकी
स्वाभाविक ही सन्तान नहीं होती, उसको
दोष लगता है या नहीं ?
उत्तर‒किसीकी स्वाभाविक
ही सन्तान नहीं होती तो यह उसका दोष नहीं है । जो कृत्रिम उपायोंसे मातृशक्तिका,
सन्तान उत्पन्न करनेकी शक्तिका नाश करती है, उसीको दोष-पाप लगता
है ।
प्रश्न‒जो
स्त्रियाँ गर्भाधानके पहले ही गोलियाँ खा लेती हैं, जिससे
गर्भ रहे ही नहीं, उनको
भी पाप लगता है क्या ?
उत्तर‒जीव
मनुष्य-शरीरमें आकर परमात्माको प्राप्त कर सकता है; अपना
और दूसरोंका भी उद्धार कर सकता है; परंतु अपनी भोगेच्छाके वशीभूत होकर उस जीवको ऐसा
मौका न आने देना पाप है ही । गीतामें भी भगवान्ने कामना‒भोगेच्छा,
सुखेच्छाको ही सम्पूर्ण पापोंका हेतु बताया है (३ । ३७) । यह
भोगेच्छा ही सम्पूर्ण पापोंकी जड़ है । परिवार-नियोजनका मतलब
केवल भोगेच्छा ही है । अतः गोलियाँ खाकर सन्तति-निरोध करना पाप ही है ।
प्रश्न‒यदि
कोई स्त्री अपने पतिको बताये बिना गर्भपात करवा ले तो क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒इसके लिये शास्त्रने
आज्ञा दी है कि उस स्त्रीका सदाके लिये त्याग कर देना चाहिये‒‘तस्यास्त्यागो विधीयते’ (पाराशरस्मृति
४ । २०) ।
गर्भपात करना महान् पाप है और पतिसे छिपाव करना अपराध है । छिपकर किये गये पापका दण्ड बहुत भयंकर होता है । अगर सन्तानकी
इच्छा न हो तो संयम रखना चाहिये । संयम रखना पाप, अन्याय
नहीं है, प्रत्युत बड़ा भारी पुण्य है, बड़ा
त्याग है, बड़ी तपस्या है ।
(अपूर्ण)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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