(गत ब्लॉगसे आगेका)
ईस्वर अंस जीव अबिनासी ।
चेतन अमल सहज सुख रासी ॥
(मानस, उत्तर॰ ११७ । २)
सहज सुखराशि होते हुए भी स्वयं दुःखी कब होता है ?
जब यह नाशवान्की पराधीनता स्वीकार कर लेता है,
तब यह दुःखी हो जाता है, नहीं तो यह दुःखी हो नहीं सकता । आप दुःखको तो चाहते नहीं पर दुःखकी सामग्री बटोरते हैं । दुःखी
होना चाहते नहीं पर नाशवान् चीजोंकी पराधीनता स्वीकार करते हैं । पराधीनतामें सुख
है ही नहीं, स्वप्नमें भी नहीं है ।
श्रोता‒जिसमें
गुण होते हैं, उसके पास आदमी ज्यादा जाते हैं ।
स्वामीजी‒गुण होनेसे उसके पास ज्यादा आदमी जाते हैं, तो गुण कौन-सा
उसका स्वरूप है ? गुण भी उसने लिया है । गुण नहीं रहेगा तो लोग उसके पास नहीं
जायँगे । आप विचार करें कि दूसरोंके जानेसे वह बड़ा कैसे हो गया ?
अगर लोगोंके जानेसे वह बड़ा हुआ,
तो उसका बड़प्पन पराधीन ही तो हुआ । लोग जायँ तो बड़ा हो गया और
लोग न जायँ तो छोटा हो गया‒यह तो पराधीनता हुई,
बड़प्पन कैसे हुआ ?
हम किसी गुणके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं,
विद्याके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं,
पदके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं,
लोगोंके द्वारा आदर-सत्कार होनेपर अपनेको बड़ा मानते हैं तो यह
सब-की-सब पराधीनता है । कोई आये चाहे न आये,
गुण हो चाहे न हो, लोग अच्छा मानें चाहे बुरा मानें,
उनसे हमें क्या मतलब है ?
हम तो जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे । आप हमें बड़ा मान लें तो क्या हम बड़े हो जायँगे
? आप छोटा मान लें तो क्या हम छोटे हो जायँगे ? जो दूसरोंके द्वारा अपनेकी बड़ा या छोटा
मानता है, वह कभी बड़ा हो सकता है क्या ?
स्वप्नमें भी नहीं हो सकता । जो दूसरी वस्तुओंके अधीन अपना बड़प्पन
मानता है, वह सुखी कैसे हो सकता है ?
उसने तो महान् गुलामी पकड़ ली । रुपये इकट्ठे कर लिये,
कागज इकट्ठे कर लिये,
हीरे-पन्ने इकट्ठे कर लिये,
पत्थरोंके टुकड़े इकट्ठे कर लिये और मान लिया कि हम बड़े हो गये
। तुम बड़े कैसे हो गये ? आपके पास धन आ गया है तो उसका सदुपयोग करें, उसे
अच्छे-से-अच्छे काममें लगायें । उसके आनेसे आप बड़े हो गये तो आपकी तो बेइज्जती ही हुई
।
भगवान् आने-जानेवाले नहीं हैं,
वे रहनेवाले हैं । उन्हें आप अपना मानेंगे तो आप असली बड़े हो
जायँगे, आपमें बड़प्पनका अभिमान नहीं आयेगा और छोटेपनका भय नहीं रहेगा
कि कोई हमें छोटा न मान ले । आपको कोई छोटा मान ले तो क्या हानि हो जायगी ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे
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