ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं
गुर्वङ्गनागमः ॥
महान्ति पातकान्याहुः संसर्गश्चापि तैः सह ।
(मनुस्मृति
११ । ५४)
‘ब्राह्मणकी
हत्या करना, मदिरा पीना, स्वर्ण आदिकी चोरी
करना और गुरुपत्नीके साथ व्यभिचार करना‒ये चार महापाप हैं । इन चारोमेंसे किसी भी महापापको
करनेवालेके साथ कोई तीन वर्षतक रहता है, उसको भी वही फल मिलता
है जो महापापीको मिलता है ।’[*]
१.
ब्रह्महत्या
चारों वर्णोंका गुरु ब्राह्मण
है‒‘वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः’, शास्त्रीय ज्ञानका
जितना प्रकाश ब्राह्मण-जातिसे हुआ है, उतना और किसी जातिसे नहीं
हुआ है । अतः ब्राह्मणकी हत्या करना महापाप है । इसी तरह
जिससे दुनियाका हित होता है ऐसे हितकारी पुरुषोंको, भगवद्भक्तको तथा गाय आदिको मारना भी महापाप ही
है । कारण कि जिसके द्वारा दूसरोंका जितना अधिक हित होता है, उसकी हत्यासे उतना ही अधिक पाप लगता है ।
२.
मदिरापान
मांस, अण्डा,
सुल्फा, भाँग आदि सभी अशुद्ध और नशा करनेवाले पदार्थोंका
सेवन करना पाप है; परंतु मदिरा पीना
महापाप है । कारण कि मनुष्यके भीतर जो धार्मिक भावनाएँ रहती हैं; धर्मकी रुचि, संस्कार रहते
हैं, उनको मदिरापान नष्ट कर देता है । इससे मनुष्य महान् पतनकी
तरफ चला जाता है ।
मदिराके निर्माणमें
असंख्य जीवोंकी हत्या होती है । गंगाजी सबको शुद्ध करनेवाली हैं; परन्तु
यदि गंगाजीमें मदिराका पात्र डाल दिया जाय तो वह शुद्ध नहीं होता । जब मदिराका पात्र
भी (जिसमें मदिरा डाली जाती है) इतना अशुद्ध हो जाता है, तब मदिरा
पीनेवाला कितना अशुद्ध हो जाता होगा‒इसका कोई ठिकाना नहीं है । मुसलमानोंके धर्मकी यह
बात मैंने सुनी है कि शरीरके जिस अंगमें मदिरा लग जाय, उस अंगकी चमड़ी
काटकर फेंक देनी चाहिये ।
प्रश्न‒आजकल कई अंग्रेजी दवाइयोंमें मदिरा मिली रहती है । अगर स्वास्थ्यके लिये ओषधिरूपसे उनका सेवन किया जाय तो क्या महापाप लगेगा ?
उत्तर‒जिनमें मदिरा है, उन ओषधियोंके सेवनसे महापाप लगेगा ही ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें
कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
[*] स्तेनो हिरण्यस्य सुरां
पिबश्च गुरोस्तल्पमावसन्ब्रह्महा चैते पतन्ति चत्वारः पञ्चमश्चार स्तैरिति ॥
(छान्दोग्य॰ ५ । १० । १)
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