(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒अगर
परिवारमें एक व्यक्ति मदिरापान करता है तो उसके संगके कारण पूरे परिवारको महापाप लगेगा
क्या ?
उत्तर‒नहीं । परिवारवालोंकी
दृष्टिमें वह कुटुम्बी है; अतः वे मदिरा पीनेवालेका संग नहीं करते,
प्रत्युत परवशतासे कुटुम्बीका संग करते हैं । ऐसे ही अगर पति
मदिरा पीता हो और स्त्रीको रात-दिन उसके साथ रहना पड़ता है तो स्त्रीको महापाप नहीं
लगेगा, क्योंकि वह मदिरा पीनेवालेका संग नहीं करती,
प्रत्युत परवशतासे पतिका संग करती है । रुचिपूर्वक संग करनेसे ही कुसंगका दोष लगता है ।
प्रश्न‒जो
पहले अनजानमें मदिरा पीता रहा है, पर अब होशमें आया है तो वह महापापसे कैसे शुद्ध हो
?
उत्तर‒वह
सच्चे हृदयसे पश्चात्ताप करके मदिरा पीना सर्वथा छोड़ दे और निश्रय कर ले कि आजसे मैं
कभी भी मदिरा नहीं पीऊँगा तो उसका सब पाप माफ हो जायगा । जीव स्वतः शुद्ध है‒‘चेतन अमल सहज सुखरासी
॥’ अतः अशुद्धिको छोड़ते ही उसको नित्यप्राप्त शुद्धि प्राप्त हो
जायगी, वह शुद्ध हो जायगा ।
३. चोरी
किसी भी चीजकी चोरी करना पाप है;
परन्तु सोना, हीरा आदि बहुमूल्य चीजोंकी चोरी करना महापाप है । तात्पर्य है
कि जो वस्तु जितनी अधिक मूल्यवान् होती है,
उसकी चोरी करनेपर उतना ही अधिक पाप लगता है ।
४. गुरुपत्नीगमन
वीर्य (ब्रह्मचर्य)-नाशके जितने उपाय हैं,
वे सभी पाप हैं[1];
परन्तु गुरुपत्नीगमन करना महापाप है । कारण कि हमें विद्या देनेवाले,
हमारे जीवनको निर्मल बनानेवाले गुरुकी पत्नी माँसे भी बढ़कर होती
है । अतः उसके साथ व्यभिचार करना महापाप है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
[1] वीर्यकी एक बूँदमें हजारों जीव होते हैं । स्त्री-संगसे जो वीर्य
नष्ट होता है, उसमेंसे जो जीव गर्भाशयमें रजके साथ चिपक जाता है,
वही गर्भ बनता है । शेष सब जीव मर जाते हैं,
जिनकी हिंसाका पाप लगता है । हाँ, केवल सन्तानोत्पत्तिके उद्देश्यसे
ऋतुकालमें स्त्री-संग करनेसे पाप नहीं लगता (पाप होता तो है,
पर लगता नहीं); क्योंकि यह शास्त्रकी,
धर्मकी आज्ञाके अनुसार है‒‘स्वभावनियतं
कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्विषम्’
(गीता १८ । ४७); ‘धर्माविरुद्धो
भूतेषु कामोऽस्मि’ (गीता ७ । ११) । परंतु केवल भोगेच्छासे स्त्रीका संग करनेसे उस हिंसाका पाप
लगता ही है । इसलिये कहा है‒
एक बार
भग भोग ते, जीव हतै
नौ लाख ।
जन मनोर नारी तजी, सुन
गोरख की साख ॥
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