(गत
ब्लॉगसे आगेका)
परस्त्रीगमन करना भी महापाप है, इसलिये इसको व्यभिचार अर्थात्
विशेष अभिचार (हिंसा) कहा गया है । अगर पुरुष परस्त्रीगमन करता है अथवा स्त्री परपुरुषगमन
करती है तो माँ-बाप, भाई-बहन आदिको तथा ससुरालमें पति,
सास-ससुर, देवर आदिको महान् दुःख होता है । इस प्रकार दो परिवारोंको दुःख
देना पाप है और निषिद्ध भोग भोगकर शास्त्र,
धर्म, समाज, कुल आदिकी मर्यादाका नाश करना भी पाप है । ये दोनों पाप एक साथ
बननेसे परस्त्रीगमन अथवा परपुरुषगमन करना विशेष अभिचार है, महापाप है । एक बुद्धिमान् सज्जनने अपना अनुभव बताया था कि परस्त्रीगमन करनेसे
हृदयका आस्तिकभाव नष्ट हो जाता है और नास्तिकभाव आ जाता है, जो
कि महान् अनर्थका मूल है ।
हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि कोई भी क्यों न हो,
सभीको ऐसे महापापोंका त्याग करना चाहिये । मनुष्य-शरीर मिला
है तो कम-से-कम महापापोंसे तो बचना ही चाहिये;
जिससे आगे दुर्गति न हो,
भूत-प्रेत आदि योनियोंकी प्राप्ति न हो ।
गर्भपात महापापसे दुगुना पाप है
जैसे ब्रह्महत्या महापाप है, ऐसे ही गर्भपात भी महापाप है ।
शास्त्रमें तो गर्भपातको ब्रह्महत्यासे भी दुगुना पाप बताया गया है‒
यत्पापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं गर्भपातने ।
प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते ॥
(पाराशरस्मृति
४ । २०)
‘ब्रह्महत्यासे जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात करनेसे लगता है । इस गर्भपातरूपी महापापका कोई प्रायश्चित्त
नहीं है, इसमें तो उस स्त्रीका त्याग कर देनेका ही विधान
है ।’
भगवान् विशेष कृपा करके जीवको मनुष्य-शरीर देते हैं, पर
नसबन्दी, आपरेशन, गर्भपात, लूप, गर्भनिरोधक
दवाओं आदिके द्वारा उस जीवको मनुष्य-शरीरमें न आने देना, उस
परवश जीवको जन्म ही न लेने देना, जन्मसे पहले ही उसको नष्ट कर देना बड़ा भारी पाप है
। उसने कोई अपराध भी नहीं किया, फिर भी उस निर्बल जीवकी हत्या कर देना उसके साथ कितना
बड़ा अन्याय है । वह जीव मनुष्य-शरीरमें आकर न जाने क्या-क्या अच्छे काम करता, समाजकी
सेवा करता, अपना उद्धार करता, पर
जन्म लेनेसे पहले ही उसकी हत्या कर देना घोर अन्याय है, बड़ा
भारी पाप है । अपना उद्धार, कल्याण न करना भी दोष, पाप
है, फिर दूसरोंको भी उद्धारका मौका प्राप्त न होने देना
कितना बड़ा पाप है ! ऐसा महापाप करनेवाले स्त्री-पुरुषकी अगले जन्मोंमें कोई सन्तान
नहीं होगी । वे सन्तानके बिना जन्म-जन्मान्तरतक रोते रहेंगे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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