(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आपने कहा कि सफाई देना सत्यका निरादर है, यह ठीक समझमें नहीं आया ।
स्वामीजी‒कोई पूछे तो सत्य बात कह दे । बिना पूछे लोगोंमें कहनेकी जरूरत नहीं । बिना पूछे
सफाई देना सत्यका निरादर है । हम पाप नहीं करते किसीको दुःख नहीं देते, फिर भी हमारी
निन्दा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिये, प्रत्युत प्रसन्नता होनी चाहिये ।
भगवान्की तरफसे जो होता है, सब मंगलमय ही होता है । इसलिये मनके विरुद्ध बात हो जाय
तो उसमें आनन्द मनाना चाहिये ।
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श्रोता‒रामायण आया है‒‘संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि’ (उत्तर॰ ४५) तो क्या शंकरके भजनके बिना हम भगवान्की भक्ति नहीं पा सकते ?
स्वामीजी‒इसमें एक मार्मिक बात है कि आपसमें खटपट,
मतभेद नहीं होना चाहिये । पहले शैवों और वैष्णवोंमें आपसमें
बड़ी खटपट थी । उसको गोस्वामीजी महाराजने दूर किया । उन्होंने शंकर और विष्णुको एक बताया
और दोनोंको एक-दूसरेका उपासक बताया । शंकरजीके लिये कहा‒‘सेवक
स्वामि सखा सिय पी के’ (मानस,
बाल॰ १५ । २) अर्थात् शंकरजी रामजीके सेवक भी हैं,
स्वामी भी हैं और मित्र भी हैं । जैसे,
शंकरजीने हनुमानजीका रूप धारण करके रामजीकी सेवा की । लंकापर
चढ़ाई करनेसे पहले रामजीने शंकरजीका पूजन किया । तात्पर्य है कि शैवों और वैष्णवोंके
बीच मतभेदको लेकर आपसमें खटपट बिकुल नहीं होनी चाहिये ।
वैष्णवलोग शिवजीके मन्दिरमें नहीं जाते तो इसमें एक छिपी हुई
बात है । वैष्णवलोग मस्तकपर जो तिलक करते हैं,
उसमें तीन रेखाएँ होती हैं‒दोनों तरफकी रेखाएँ भगवान्के चरणोंका
चिह्न और दोनोंके बीचकी लाल रेखा लक्ष्मीजीका चिह्न है । इस तिलकको लगाकर शंकरके सामने
नहीं जाते; क्योंकि भगवान् शंकर नग्नवेशमें हैं,
फिर लक्ष्मीजीका चिह्न लगाकर उनके सामने कैसे जायँ ?
परन्तु इसका तात्पर्य खटपट नहीं होना चाहिये । किसीसे भी वैर
रखना नरकोंमें ले जानेवाला है । गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒
संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास ।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास ॥
(मानस,
लंका॰ २)
वास्तवमें भगवान् विष्णु और शंकर एक हैं । सत्त्वगुणका रंग सफेद,
रजोगुणका रंग लाल और तमोगुणका रंग काला है । सृष्टिकर्ता (रजोगुणी)
ब्रह्माजीका रंग तो लाल है, पर विष्णुका काला और शंकरका सफेद रंग है,
जबकि पालनकर्ता सत्त्वगुणी विष्णुका सफेद और संहारकर्ता (तमोगुणी)
शंकरका काला रंग होना चाहिये । कारण यह है कि शंकरका ध्यान करनेसे विष्णु काले हो गये
और विष्णुका ध्यान करनेसे शंकर सफेद हो गये ! विष्णुके भक्त जो तिलक करते हैं,
वह शंकरके त्रिशूलके समान है,
और शंकरके भक्त जो तिलक करते हैं,
वह विष्णुके धनुषके समान है ।
आपके घरोंमें भी आपसमें खटपट नहीं होनी चाहिये । आपसमें प्रेम
होना चाहिये । उपासना भले ही अलग-अलग हो, पर आपसमें वैर नहीं होना चाहिये । आपसका वैर विनाश करनेवाला
होता है । किसीसे वैर करोगे तो फिर ‘वासुदेवः सर्वम्’
(सब संसार भगवत्सरूप है) का
अनुभव कैसे करोगे ? घरमें साथ-साथ रहो तो प्रेमके लिये और मतभेद होनेपर अलग-अलग
हो जाओ तो प्रेमके लिये । आपसका प्रेम परमात्माकी तरफ ले जानेवाला होता है । आपसमें
खटपट रखते हो तो आपने सत्संग क्या किया ? यह तो कुसंग है । कोई किसी भी इष्टको माने,
पर आपसमें प्रेम होना चाहिये । हमारे सत्संगमें सभी सम्प्रदायोंके
लोग आते हैं, मुसलमान भी आते हैं । सुजानगढ़में मुसलमान लोग मुझे अपने घर भी
ले गये थे । सत्संग करनेसे कई मुसलमानोंने शराब और मांसका सेवन करना छोड़ दिया । इसलिये
आप सबके साथ प्रेम रखो, सबका हित चाहो । प्रेम ऐसी चीज है,
जो जड़तामें भी चेतनता ले आती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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