(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒जब भगवान् अपने हैं तो फिर हम उनसे बिछुड़ कैसे गये ?
चौरासी लाख योनियोंके चक्करमें कैसे पड़ गये ?
यह आप बतानेकी कृपा करें ।
स्वामीजी‒बता तो मैं दूँगा, पर इसमें आपको फायदा नहीं है,
नुकसान है । मैल कैसे लगा,
कब लगा, इससे क्या फायदा ? उसको साफ कर दो, इतनी बात है । बीती हुई बातकी चिन्ता करना बुद्धिमानी नहीं है
। एक कहावत है कि ‘गयी तिथि ब्राह्मण भी बाँचता नहीं’ ।
आज आपको रुपये और भोग अच्छे लगते हैं बस,
यही बन्धनका कारण है । जबतक ये अच्छे लगते रहेंगे,
तबतक छूटोगे नहीं । जब ये अच्छे लगने बन्द हो जायँगे, पट प्राप्ति
हो जायगी ! हम इसलिये फँसे हैं कि हम रुपये और भोग चाहते हैं,
मान-बड़ाई चाहते हैं, सत्कार चाहते हैं । यह चाहना छोड़ दें तो
सब ठीक हो जायगा ।
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लोग निन्दा करें तो करने दो । सब लोगोंको अपनी तरफसे छुट्टी
दे दो, वे चाहे निन्दा करें, चाहे प्रशंसा करें, जिसमें वे राजी हों, करें । आप सबको
छुट्टी दे दो तो आपको छुट्टी (मुक्ति) मिल जायगी ! प्रशंसामें तो मनुष्य फँस सकता है,
पर निन्दामें पाप नष्ट होते हैं । कोई झूठी निन्दा करे तो चुप रहो, सफाई मत दो । सत्यकी
सफाई देना सत्यका निरादर है । भरतजी कहते हैं‒
जानहुँ राम कुटिल करि मोही ।
लोग कहउ गुर साहिब द्रोही
॥
सीता राम चरन रति
मोरें ।
अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें ॥
(मानस,
अयोध्या॰ २०५ । १)
दूसरा आदमी हमें खराब समझे तो इसका कोई मूल्य नहीं है । भगवान्
दूसरेकी गवाही नहीं लेते । दूसरा आदमी अच्छा कहे तो आप अच्छे हो जाओगे ऐसा कभी होगा
नहीं । अगर आप बुरे हो तो बुरे ही रहोगे । अगर आप अच्छे हो तो अच्छे ही रहोगे, भले
ही पूरी दुनिया बुरा कहे । लोग निन्दा करें तो मनमें आनन्द आना चाहिये । एक सन्तने
कहा है‒
मन्निन्दया यदि जनः परितोषमेति नन्वप्रयत्नसुलभोऽयमनुग्रहो मे
।
श्रेयोऽर्थिनो हि पुरुषाः परतुष्टिहेतोर्दुःखार्जितान्यपि धनानि
परित्यजन्ति ॥
(जीवन्मुक्तिविवेक २)
‘मेरी निन्दासे यदि किसीको सन्तोष होता है, तो बिना प्रयत्नके ही मेरी उनपर कृपा
हो गयी; क्योंकि कल्याण चाहनेवाले पुरुष तो दूसरोंके सन्तोषके
लिये अपने कष्टपूर्वक कमाये हुए धनका भी परित्याग कर देते हैं (मुझे तो कुछ करना ही
नहीं पड़ा) !’
किसी आदमीके पास दस हजार रुपये हैं और वह टिकट लेकर गाड़ीपर चढ़ा
है, पर दूसरे कहते हैं कि इसके पास एक कौड़ी भी नहीं है, टिकट भी नहीं लिया होगा, तो
क्या उस आदमीको दुःख होगा ? वह तो सोचेगा कि अच्छी बात है मेरी रक्षा हो गयी कोई जेबकतरा
नजदीक नहीं आयेगा !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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