(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक विलक्षण बात है कि परमात्मा सम्पूर्ण प्राणियोंमें हैं ।
अगर कोई समझना चाहे तो मनुष्यमात्र इस तत्त्वको समझ सकता है । शरीर किसीके साथ रहनेवाला
नहीं है और परमात्मा किसीका साथ छोड़नेवाले नहीं हैं । परमात्मा सबके साथ सदा रहते हैं
। केवल यह विश्वास कर लें कि परमात्मा सबमें हैं और वे मेरे हैं । जैसे हवाई जहाज चलता
है तो उसमें कोई मनुष्य (चालक) दीखता नहीं,
पर उसमें मनुष्य जरूर होता है,
नहीं तो उसको चलाता कौन है ?
ऐसे ही परमात्मा सबमें हैं,
नहीं तो सबको चलाता कौन है ?
वे परमात्मा हमारे हैं । एक बात और समझनेकी है कि एक परमात्माके
सिवाय अपनी चीज कोई नहीं है । अनन्त ब्रह्माण्ड हैं,
पर उनमें तिल जितनी चीज भी अपनी नहीं है । इसलिये संसारसे मिली
हुई चीजोंके द्वारा संसारकी सेवा करो, संसारको सुख पहुँचाओ । ‘है’ नाम परमात्माका ही है । संसार ‘नहीं’ है । जो ‘है’, वह हमारा है । जो ‘नहीं’ है, वह हमारा नहीं है ।
ऐसा विश्वास करो कि हमारा परमात्मा हमारेमें है । परमात्मा विश्वाससे
मिलते हैं‒
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु ॥
(मानस, उत्तर॰ ९० क)
☀☀☀☀☀
जो चीज जितनी श्रेष्ठ और आवश्यक होती है,
उतनी ही वह सस्ती मिलती है । हीरा-पन्ना हमें उम्रभर देखनेको
न मिलें तो भी हम जी सकते हैं, इसलिये वे बहुत महँगे मिलते हैं । अन्न उससे भी सस्ता मिलता
है; क्योंकि अन्नके बिना हम जी नहीं सकते । अन्नसे भी जल ज्यादा आवश्यक है,
इसलिये वह अन्नसे भी सस्ता मिलता है । जलके बिना तो हम कुछ रह
सकते हैं, पर हवाके बिना तो रह ही नहीं सकते,
इसलिये हवा मुफ्तमें मिलती है तथा सब जगह मिलती है । परन्तु
परमात्मा उससे भी सस्ते हैं ! हवा कहीं कम मिलती है,
कहीं ज्यादा; कभी तेज चलती है, कभी मन्द; परन्तु परमात्मा सब जगह तथा सब समय समान रीतिसे ज्यों-के-त्यों
परिपूर्ण हैं, और वे सबके अपने हैं । उनके बिना कोई भी चीज नहीं है । पृथ्वी,
जल, हवा, अग्नि और आकाश तो सदा नहीं रहेंगे,
पर परमात्मा सदा ज्यों-के-त्यों रहेंगे । अतः परमात्मा सबसे
आवश्यक हैं और सबसे सस्ते हैं । आपने सांसारिक चीजोंको ज्यादा महत्त्व दे रखा है,
इसलिये परमात्मा दीखते नहीं । इनको इतना महत्त्व मत दो,
परमात्मा दीख जायँगे,
उनकी प्राप्ति हो जायगी । केवल उनको याद रखो कि हमारे प्रभु
सबमें हैं । उनको याद करनेमें कोई खर्चा नहीं,
कोई परिश्रम नहीं, और निहाल हो जाओगे ! जिसने परमात्माको हर समय याद रखा,
वह सन्त-महात्मा हो गया !
आप लोगोंके पास धन-सम्पत्ति,
घर-परिवार आदि है, फिर भी चिन्ता रहती है । परन्तु विरक्त सन्तोंके पास कुछ भी
नहीं होता, जंगलमें रहते हैं, फिर भी वे मस्तीमें रहते हैं । इससे सिद्ध होता है कि उनको आपलोगोंसे
भी कोई बढ़िया चीज मिली है । वह चीज केवल सन्तोंके लिये ही हो,
ऐसी बात नहीं है । वह चीज सब भाई-बहनोंके लिये है । वह मिल जाय
तो फिर मौज-ही-मौज है, आनन्द-ही-आनन्द है !!
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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