(गत ब्लॉगसे आगेका)
आपका भला वास्तवमें भगवान्की कृपासे होगा,
आपकी चतुराईसे नहीं । अपनी चतुराईसे भला होता हो तो सब अपना
भला कर लें । भगवान्की कृपा तब होगी, जब आप अपना स्वार्थ और अभिमान छोड़ दोगे,
भगवान्के शरण हो जाओगे । भगवान्की कृपाका भरोसा रखोगे तो जहाँ
जाओगे, वहीं आपकी विजय होगी । पाण्डवोंने विजय प्राप्त की तो उसके पीछे
भगवान्की कृपाका ही बल था । इसलिये आप निमित्तमात्र बन जाओ,
रात-दिन भजन-स्मरण करो,
पर भरोसा कृपाका ही रखो । एक भगवान्को याद रखो तो सब काम सिद्ध
हो जायगा, लोक और परलोक सब सिद्ध हो जायगा‒‘एकै
साधै सब सधै, सब साधे सब जाय’ । भगवान्के भक्त भगवान्को याद रखते हैं,
फिर वे संसारके सुख और दुःखकी परवाह नहीं करते ।
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धर्मके लिये, दान-पुण्य करनेके लिये,
दूसरोंका हित करनेके लिये भी पैसेकी जरूरत नहीं है । जो धर्मके
लिये पैसा चाहता है, वह धर्मके तत्त्वको नहीं जानता । बम्बईमें मेरेसे कहा गया कि
गायें भूखों मर रही हैं, अगर आप सत्संगमें कुछ दान-पेटियाँ रखवा दें और धनी आदमियोंको
इकट्ठा करके गायोंकी सेवा करनेकी प्रेरणा करें तो बहुत रुपये इकट्ठे हो जायँगे,
जिनसे गायोंकी बहुत सेवा होगी । मैंने कहा कि मैं वास्तवमें
यहाँ ईश्वर और धर्मका महत्त्व बढ़ाने आया हूँ । अगर मैं ऐसी बात करूँ तो सबके मनमें
यह जँचेगी कि पैसा बहुत बढ़िया चीज है, स्वामीजी भी पैसा लानेकी बात कहते हैं ! इनको भी पैसोंकी जरूरत
है ! इससे पैसोंका ही महत्त्व बढ़ेगा, जो आपके भीतर पहलेसे ही बढ़ा हुआ है । मैं पैसोंका महत्त्व बढ़ाना
नहीं चाहता । कलकत्तेमें भी मुझसे ऐसी बात कही गयी तो मैंने कहा कि कि किसीको पैसोंके
लिये कहना, पैसे माँगना उसके कलेजेमें छुरी चलाना है ! ऐसा कसाईपना मेरेसे
नहीं होता ! लोग कहते तो हैं कि पैसा हाथकी मैल है,
पर यह बात केवल कहनेकी है । वास्तवमें तो पैसा उनके कलेजेकी
कोर टुकड़ा है !
आपकी शक्ति हो तो गायोंका पालन करो, गरीबोंकी सेवा करो,
पर किसीसे पैसा मत माँगो । पैसोंकी गुलामी मत करो । आपके भाग्यसे
जो पैसा आनेवाला है, वह तो आयेगा ही । ब्रह्माजीकी भी ताकत नहीं कि उसे रोक दें !
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परमात्माको प्राप्त करना सम्भव है,
पर शरीरको बनाये रखना असम्भव है । उम्र कम-ज्यादा हो सकती है,
पर शरीर सदा बना रहे‒यह सम्भव नहीं है । जो बहुत बड़े चिरंजीवी
हैं, उनका भी शरीर सदा बना नहीं रहता । इसलिये शरीरको बनाये रखनेकी धारणा न करके परमात्माको
प्राप्त करनेकी धारणा करनी चाहिये । यह मूल,
खास बात है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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