(गत ब्लॉगसे आगेका)
जिन मनुष्योंका स्वभाव सौम्य है,
दूसरोंको दुःख देनेका नहीं है;
परन्तु सांसारिक वस्तु, स्त्री, पुत्र, धन,
जमीन आदिमें जिनकी ममता-आसक्ति रहती है,
ऐसे मनुष्य मरनेके बाद सौम्य स्वभाववाले भूत-प्रेत
बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट
हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते और अपनी गतिका उपाय भी बता देते हैं ।
जिनको विद्या आदिका बहुत अभिमान, मद
होता है; उस अभिमानके कारण जो दूसरोंको नीचा दिखाते हैं, दूसरोंका
अपमान-तिरस्कार करते हैं, दूसरोंको कुछ भी नहीं समझते, ऐसे
मनुष्य मरकर ‘ब्रह्मराक्षस’ (जिन्न)
बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट
हो जाते हैं, किसीको पकड़ लेते हैं तो बिना अपनी इच्छाके उसको छोड़ते नहीं ।
इनपर कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं चलता । दूसरा कोई इनपर मन्त्रोंका प्रयोग करता है तो उन
मन्त्रोंको ये स्वयं बोल देते हैं ।
एक सच्ची घटना है । दक्षिणमें मोरोजी पन्त नामक एक बहुत बड़े
विद्वान् थे । उनको विद्याका बहुत अभिमान था । वे अपने समान किसीको विद्वान् मानते
ही नहीं थे और सबको नीचा दिखाते थे । एक दिनकी बात है,
दोपहरके समय वे अपने घरसे स्नान करनेके लिये नदीपर जा रहे थे
। मार्गमें एक पेड़पर दो ब्रह्मराक्षस बैठे हुए थे । वें आपसमें बातचीत कर रहे थे ।
एक ब्रह्मराक्षस बोला‒हम दोनों तो इस पेड़की दो डालियोंपर बैठे हैं,
पर यह तीसरी डाली खाली है;
इसपर कौन आयेगा बैठनेके लिये ?
दूसरा ब्रह्मराक्षस बोला‒यह जो नीचेसे जा रहा है न ?
यह आकर यहाँ बैठेगा;
क्योंकि इसको अपनी विद्वत्ताका बहुत अभिमान है । उन दोनोके संवादको
मोरोजी पन्तने सुना तो वे वहीं रुक गये और विचार करने लगे कि अरे ! विद्याके अभिमानके
कारण मेरेको ब्रह्मराक्षस बनना पड़ेगा, प्रेतयोनियोंमें जाना पड़ेगा ! अपनी दुर्गतिसे
वे घबरा गये और मन-ही-मन सन्त ज्ञानेश्वरजीके शरणमें गये कि मैं आपके शरणमें हूँ आपके
सिवाय मेरेको इस दुर्गतिसे बचानेवाला कोई नहीं है । ऐसा विचार करके वे वहींसे आलन्दीके
लिये चल पड़े, जहाँ संत ज्ञानेश्वरजी जीवित समाधि ले चुके थे । फिर वे जीवनभर
वहीं रहे, घर आये ही नहीं । सन्तकी शरणमें जानेंसे
उनका विद्याका अभिमान चला गया और सन्त-कृपासे वे भी सन्त बन गये !
जो स्त्री पर-पुरुषका चिन्तन करती रहती है तथा जिसकी
पुरुषमें बहुत ज्यादा आसक्ति होती है,
वह मरनेके बाद ‘चुड़ैल’ बन
जाती है । भूत-प्रेतोंका
प्रायः यह नियम रहता है कि पुरुष भूत-प्रेत पुरुषोंको ही पकड़ते है और स्त्री भूत-प्रेत
स्त्रियोंको ही पकड़ते हैं; परन्तु चुड़ैल केवल पुरुषोंको ही पकड़ती है । चुड़ैल दो प्रकारकी
होती है‒एक तो पुरुषका शोषण करती रहती है अर्थात् उसका खून चूसती रहती है,
उसकी शक्ति क्षीण करती है;
और दूसरी पुरुषका पोषण करती है,
उसको सुख-आराम देती है । ये दोनों ही प्रकारकी चुड़ैलें पुरुषको
अपने वशमें रखती हैं ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे |