(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सिपाही था । वह रातके समय कहींसे अपने घर आ रहा था । रास्तेमें
उसने चन्द्रमाके प्रकाशमें एक वृक्षके नीचे एक सुन्दर स्त्री देखी । उसने उस स्त्रीसे
बातचीत की तो उस स्त्रीने कहा‒मैं आ जाऊँ क्या ?
सिपाहीने कहा‒हाँ, आ जा । सिपाहीके ऐसा कहनेपर वह स्त्री जो
चुड़ैल थी, उसके पीछे आ गयी । अब वह रोज रातमें उस सिपाहीके पास आती,
उसके साथ सोती, उसका संग करती और सबेरे चली जाती । इस तरह वह उस सिपाहीका शोषण
करने लगी । एक बार रातमें वे दोनों लेट गये,
पर बत्ती जलती रह गयी तो सिपाहीने उससे कहा कि तू बत्ती बन्द
कर दे । उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ लम्बा करके बत्ती बन्द कर दी । अब सिपाहीको पता
लगा कि यह कोई सामान्य स्त्री नहीं है, यह तो चुड़ैल है ! वह बहुत घबराया । चुड़ैलने उसको धमकी दी कि
अगर तू किसीकी मेरे बारेमें बतायेगा तो मैं तेरेको मार डालूँगी । इस तरह वह रोज रातमें
आती और सबेरे चली जाती । सिपाहीका शरीर दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा था । लोग उससे पूछते
कि भैया ! तुम इतने क्यों सूखते जा रहे हो ?
क्या बात है, बताओ तो सही । परन्तु चुड़ैलके डरके मारे वह किसीको कुछ बताता
नहीं था । एक दिन वह दूकानसे दवाई लाने गया । दूकानदारने दवाईकी पुड़िया बाँधकर दे दी
। सिपाही उस पुड़ियाको जेबमें डालकर घर चला आया । रातके समय जब वह चुड़ैल आयी,
तब वह दूरसे ही खड़े-खड़े बोली कि तेरी जेबमें जो पुड़िया है,
उसको निकालकर फेंक दे । सिपाहीको विश्वास हो गया कि इस पुड़ियामें
जरूर कुछ करामात है, तभी तो आज यह चुड़ैल मेरे पास नहीं आ रही है ! सिपाहीने उससे
कहा कि मैं पुड़िया नहीं फेकूँगा । चुड़ैलने बहुत कहा,
पर सिपाहीने उसकी बात मानी नहीं । जब चुड़ैलका उसपर वश नहीं चला,
तब वह चली गयी । सिपाहीने जेबमेंसे
पुड़ियाको निकालकर देखा तो वह गीताका फटा हुआ पन्ना था ! इस तरह गीताका प्रभाव देखकर
वह सिपाही हर समय अपनी जेबमें गीता रखने लगा । वह चुड़ैल फिर कभी उसके पास नहीं आयी
।
जो लोग भगवान्के मन्दिरमें रहते है; गीता, रामायण, भागवत
आदिका पाठ करते हैं; भगवान्की आरती, स्तुति, प्रार्थना
करते हैं, भगवन्नामका जप करते हैं, पर
साथ-ही-साथ लोगोंको ठगते हैं, भगवान्की भोग-सामग्री, वस्त्र आदिकी चोरी करते हैं, ठाकुरजीको
पैसा कमानेका साधन मानते हैं, ऐसे मनुष्य भी मरनेके बाद भगवदपराधके कारण भूत-प्रेत
बन सकते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट
हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते । पूर्वजन्ममें भगवत्पूजा,
आरती, स्तुति-प्रार्थना आदि करनेका स्वभाव पड़ा हुआ होनेसे ऐसे भूत-प्रेत
भगवन्नामका जप करते हैं, हाथमें गोमुखी रखते हैं,
मन्दिरमें जाते हैं,
परिक्रमा करते हैं,
भगवान्की स्तुति, प्रार्थना आदि भी करते हैं । परन्तु किसी मनुष्यमें
प्रविष्ट हुए बिना ये भगवान्की स्तुति-प्रार्थना नहीं कर सकते । वृन्दावनमें बाँकेबिहारीजीके
मन्दिरमें एक छोटा बालक आया करता था । वह संस्कृत जानता ही नहीं था,
पर बिहारीजीके सामने खड़े होकर वह संस्कृतमें भगवान्के स्तोत्रोंका
जोर-जोरसे पाठ किया करता था । पाठ करते समय उसकी आवाज भी बालक-जैसी नहीं रहती थी, प्रत्युत
बड़े आदमी-जैसी आवाज सुनायी दिया करती थी । कारण यह था कि उसमें एक प्रेत प्रविष्ट होता
था और भगवान्की स्तुति करता था, पर वह उस बालकको दुःख नहीं देता था । भगवदपराधका फल भोगनेके बाद भगवत्कृपासे ऐसे भूत-प्रेतोंकी सद्गति हो जाती
है, प्रेतयोनि छूट जाती है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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