(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒क्या
शरीरमें एकसे अधिक भूत-प्रेत भी रह सकते हैं ?
उत्तर‒हाँ, रह सकते हैं । किसी-किसी व्यक्तिके शरीरमें एकसे अधिक भूत-प्रेत भी प्रविष्ट
हो जाते हैं । जब वे उसके मुखसे बोलते हैं,
तब सबकी अलग-अलग आवाज सुनायी पड़ती है ।
प्रश्र‒मनुष्यशरीरमें
प्रविष्ट होनेके बाद भूत-प्रेत हरदम उसीमें रहते हैं क्या ?
उत्तर‒भूत-प्रेत उसमें प्रायः आते-जाते रहते हैं । वे उसके पासमें ही घूमते रहते हैं
और उनकी वायुके समान तेज गति होनेसे वे दूर भी चले जाते हैं । कुछ ऐसे भूत-प्रेत भी
होते हैं, जो हरदम उसीमें रहते हैं ।
भूत-प्रेत हरेकको दुःख देनेमें,
हरेक शरीरमें प्रविष्ट होनेमें स्वतन्त्र नहीं होते । वे अपनी
मनमानी नहीं कर सकते । वे जिनके शासनमें रहते हैं,
उनकी आज्ञाके अनुसार ही वे कार्य करते हैं अर्थात् शासकके आज्ञानुसार
ही वे किसीके शरीरमें प्रविष्ट होते हैं, किसीको दुःख देते हैं । अगर शासक आज्ञा न दे तो वे हरेक व्यक्तिमें
हरेक समयमें भी प्रविष्ट नहीं हो सकते । जैसे शुभकर्मोंके फलस्वरूप जो स्वर्गादि लोकोंमें
जाते हैं, वे अगर मृत्युलोकमें किसीके साथ सम्बन्ध करते हैं तो उन लोकोंके
शासकोंकी आज्ञाके अनुसार ही करते हैं । स्वतन्त्ररूपसे वे मृत्युलोकमें किसीके साथ
बातचीत भी नहीं कर सकते । इसी तरह भूत-प्रेतयोनिमें भी शासक रहते हैं,
जिनकी आज्ञाके अनुसार ही भूत-प्रेत सब कार्य करते हैं ।
जैसे, नरकोंमें प्राणियोंको उबलते हुए तेलमें डाल देते हैं,
उनके शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं,
फिर भी जिन पापकर्मोंके कारण वे नरकोंमें गये हैं,
उन कर्मोंके समाप्त होनेतक वे प्राणी मरते नहीं । ऐसे ही मनुष्यका
कोई बुरे कर्मोंका भोग आ जाता है तो उनमें भूत-प्रेत प्रविष्ट हो जाते हैं । जबतक कर्मोंका
भोग बाकी रहता है, तबतक कितने ही उपाय करनेपर,
मन्त्र-यन्त्र आदिका प्रयोग करनेपर भी भूत-प्रेत निकलते नहीं
। जब कर्मोंका भोग समाप्त हो जाता है, तब किसी निमित्तसे वे निकल जाते हैं । तात्पर्य यह है कि जिनको
प्रारब्धके अनुसार दुःख भोगना है, उन्हींमें प्रविष्ट होकर भूत-प्रेत उनको दुःख देते हैं ।
ऐसा देखा जाता है कि कुटुम्बका कोई व्यक्ति मरकर पितर बन जाता
है तो वह जब आता है, तब किसी एक व्यक्तिमें ही आता है,
हरेकमें नहीं आता । इससे पता लगता है कि जिसके साथ पुराना ऋणानुबन्ध
होता है, उसीमें पितर आते हैं । इसी तरह भूत-प्रेत भी उसीमें आते हैं,
जिनके साथ पुराना ऋणानुबन्ध होता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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