(गत ब्लॉगसे आगेका)
वास्तवमें भारतके लिये परिवार-नियोजनकी आवश्यकता है ही नहीं
। कारण कि भारतमें अपार प्राकृतिक सम्पदा है । भारत-भूमिपर सूर्यकी पूर्ण किरणें पड़ती
हैं । अतः भारतमें छः ऋतुएँ होती हैं और अनेक प्रकारकी जलवायु मिलती है । ऐसा अन्य
किसी देशमें नहीं मिलता । भारतमें जितने प्रकारकी ओषधियों जड़ी-बूटियाँ, वृक्ष,
खनिज पदार्थ, अन्न, फल, सब्जियाँ आदि पैदा होती हैं,
उतनी अन्य किसी देशमें पैदा नहीं होतीं । जितनी विद्याएँ,
कला-कौशल भारतमें मिलते हैं,
उतने दूसरे किसी देशमें नहीं मिलते । एक-एक विषयपर जितने ग्रंथ
यहाँ पाये जाते हैं, उतने अन्य किसी देशमें नहीं पाये जाते । आविष्कार करनेके लिये
भारतके पास बहुत सामग्री है । भारतमें जैसे शूरवीर,
सतियाँ, योगी, त्यागी सन्त, सिद्ध पुरुष, ऋषि-मुनि, तपस्वी, राजा, संयमी पुरुष हुए हैं,
वैसे अन्य किसी भी देशमें नहीं हुए । अगर सरकार यहाँके वैज्ञानिकों
आदिको प्रोत्साहन दे और वे विदेशोंमें न जाकर यहाँ रहकर खोज करें तो भारतमें बहुत विलक्षण
आविष्कार हो सकते हैं, जिससे यह देश दुनियाको शिक्षा देनेवाला हो सकता है ।
अगर जनसंख्या अधिक होगी तो पैदावार भी अधिक होगी,
जिसका लाभ दूसरे देशोंको भी मिलेगा । प्रत्यक्ष बात है कि पहले
जनसंख्या कम थी तो अनाज विदेशोंसे मँगाना पड़ता था । परन्तु अब जनसंख्या बढ़ गयी तो अनाज
तथा अन्य कई वस्तुएँ बाहर भेजी जाती हैं । यह बात सरकारसे छिपी नहीं है,
पर वह इधर ध्यान नहीं देती । आवश्यकता आविष्कारकी जननी है ।
जनसंख्या बढ़ती है तो उसके जीवन-निर्वाहके साधन भी बढ़ते हैं,
अन्नकी पैदावार भी बढ़ती है,
वस्तुओंका उत्पादन भी बढ़ता है,
उद्योग भी बढ़ते हैं । परुन्तु आज उलटी बुद्धि हो रही है ! उत्पादनको
तो बढ़ाना चाहते हैं, पर उत्पादन करनेवालोंको जन्म लेनेसे रोक रहे हैं । सरकारका कर्तव्य
अपने देशमें जन्म लेनेवाले प्रत्येक नागरिकके जीवन-निर्वाहकी व्यवस्था करना है,
न कि उसके जन्मपर ही रोक लगा देना । एक आदमीके पास खेती करनेके
लिये लगभग आठ सौ बीघा जमीन पड़ी है । उसके दो लड़के हैं,
एक बम्बईमें नौकरी करता है और एक माता-पिताके पास रहकर उनकी
सेवा करता है । अब उस खेतीको सँभालनेवाला कोई नहीं है । जनसंख्या कम करनेसे यही दशा
होनेवाली है !
शेष आगेके ब्लॉगमें
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे
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