।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशीवि.सं.२०७३रविवार
घोर पापोंसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)

जनसंख्याको नियन्त्रण करनेका काम प्रकृतिका है, मनुष्यका नहीं । प्रकृतिके द्वारा जो कार्य होता है, उसके द्वारा सबका हित होता है; क्योंकि वह परमात्माके इशारेपर चलती है[1] । परन्तु मनुष्य भोगबुद्धिसे जो कार्य करता है, उसके द्वारा सबका महान् अहित होता है । अगर मनुष्य प्रकृतिके कार्यमें हस्तक्षेप करेगा तो इसका परिणाम बड़ा भयंकर होगा ।

अरबों वर्षोंसे सृष्टि चली आ रही है । प्रकृतिके द्वारा सदासे जनसंख्यापर नियन्त्रण होता आया है । कभी जनसंख्या बहुत बढ़ी है तो भूकम्प, उल्कापात, बाढ़, सूखा, अकाल, युद्ध, महामारी आदिके कारण वह कम भी हुई है । परन्तु आजतक इतिहासमें ऐसी बात पढ़ने-सुननेमें नहीं आयी कि लोगोंने व्यापक रूपसे गर्भपात, नसबंदी आदि कृत्रिम साधनोंके द्वारा जनसंख्याको कम करनेका प्रयत्न किया हो । कुत्ते, बिल्ली, सूअर आदिके एक-एक बारमें कई बच्चे होते हैं और वे सन्तति-निरोध भी नहीं करते, फिर भी उनसे सब सड़कें, गलियों भरी हुई नहीं दिखतीं । उनका नियन्त्रण कैसे होता है ? वास्तवमें मनुष्योंपर जनसंख्या-नियन्त्रणका भार, जिम्मेवारी है ही नहीं । एक मनुष्यके पैदा होनेमें नौ-दस महीने लग जाते हैं, पर मरनेमें समय नहीं लगता । प्राकृतिक प्रकोपसे सैकड़ों-हजारों मनुष्य एक साथ मर जाते हैं । मनुष्य कृत्रिम उपायोंसे सन्तति-निरोध करेगा तो ऐसी रीति पड़नेसे मनुष्योंके जन्मपर तो रोक लग जायगी, पर मृत्युपर रोक कैसे लगेगी ? मृत्यु तो सदाकी तरह अपना काम करती रहेगी । फिर इसका परिणाम क्या होगा ? एक गाँवकी सच्ची बात है । एक सज्जनके दो लड़के थे । उन्होंने नसबन्दी करवा ली । बादमें एक लड़केकी मृत्यु हो गयी । कुछ समयके बाद दूसरा लड़का भी मर गया । अब बूढ़े माता-पिताकी सेवा करनेवाला भी कोई नहीं रहा ! हम दक्षिणकी यात्रापर गये थे । वहाँ एक पति-पत्नीने आकर मेरेसे कहा कि हमारे दो लड़के थे । हमने ऑपरेशन करवा लिया । एक लड़का पागल कुत्तेके काटनेसे मर गया । अब एक लड़का रहा है । आप आशीर्वाद दें कि वह मरे नहीं ! मैंने कहा कि आपके घरमें सन्तान पैदा करनेकी खान थी । वह तो आपने बन्द कर दी और आशीर्वाद मेरेसे माँगते हो । मैं अपनेमें आशीर्वाद देनेकी योग्यता नहीं मानता ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे




[1] मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।
   हेतुनानेन   कौन्तेय    जगद्विपरिवर्तते ॥ (गीता ९ । १०)

‘प्रकृति मेरी अध्यक्षतामें सम्पूर्ण चराचर जगत्‌को रचती है । हे कुन्तीनन्दन ! इसी हेतुसे जगत्‌का विविध प्रकारसे परिवर्तन होता है ।’