(गत ब्लॉगसे आगेका)
कुछ लोग कहते हैं कि जनसंख्या अधिक होनेसे पाप अधिक बढ़ गये हैं
। यह बिलकुल गलत बात है । पाप जनसंख्या अधिक होनेसे नहीं बढ़ते,
प्रत्युत मनुष्योंमें धार्मिकता और आस्तिकता न होनेसे तथा भोगेच्छा
होनेसे बढ़ते हैं, जिसमें सरकार कारण है । लोगोंको शिक्षा ही ऐसी दी जा रही है,
जिससे उनका धर्म और ईश्वरपरसे विश्वास उठ रहा है तथा भोगेच्छा
बढ़ रही है । इसी कारण तरह-तरहके पाप बढ़ रहे हैं । इसी तरह बेरोजगारी,
निर्धनता आदिका कारण भी जनसंख्याका बढ़ना नहीं है,
प्रत्युत मनुष्योंमें अकर्मण्यता,
प्रमाद, आलस्य, व्यसन आदिका बढ़ना है । मनुष्योंमें भोगबुद्धि बहुत ज्यादा हो
गयी है । भोगी मनुष्य ही पापी, अकर्मण्य, प्रमादी, आलसी और व्यसनी होते हैं । साधन करनेवाले सात्त्विक मनुष्योंके
पास तो खाली समय रहता ही नहीं !
किसी देशका नाश करना हो तो दो तरीके हैं‒पैदा न होने देना और
मार देना । आज मनुष्योंको तो पैदा होनेसे रोक रहे हैं और पशुओंको मार रहे हैं । मनुष्योंके
विनाशका नाम रखा है‒परिवार-कल्याण और पशुओंके विनाशका नाम रखा है‒मांस-उत्पादन ! जब
विनाशकाल नजदीक आता है, तभी ऐसी विपरीत राक्षसी बुद्धि होती है । मन्दोदरी रावणसे कहती
है‒
निकट काल जेहि आवत साईं
।
तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाई ॥
(मानस, लंका॰ ३७ । ४)
आजकलके मनुष्य तो राक्षसोंसे भी गये-बीते हैं ! राक्षसलोग तो
देवताओंकी उपासना करते थे, तपस्या करते थे, मन्त्र-जप करते थे और उनसे शक्ति प्राप्त करते थे । परन्तु आजकलके
मनुष्योंकी वृत्ति तो राक्षसोंकी (दूसरोंका नाश करनेकी) है,
पर देवताओंको, तपस्याको, मन्त्र-जप आदिको मानते ही नहीं,
प्रत्युत इनको फालतू समझते हैं !
जिस माँके लिये कहा गया है‒‘मात्रा
समं नास्ति शरीरपोषणम्’ ‘माँके समान शरीरका पालन-पोषण करनेवाला दूसरा
कोई नहीं है’, उसी माँका परिवार-नियोजन-कार्यक्रमके प्रचारसे इतना पतन हो गया
है कि अपने गर्भमें स्थित अपनी ही सन्तानका नाश कर रही है ! एक सास-बहूकी बात मैंने
सुनी है । बहू दो सन्तानके बाद गर्भपात करानेवाली थी,
पर सासने उसको ऐसा करनेसे रोक दिया । उसके गर्भसे लड़केने जन्म
लिया । फिर चौथी बार गर्भवती होनेपर उसने सासको बिना बताये पीहरमें जाकर गर्भपात और
ऑपरेशन करवा लिया । अब वह तीसरा लड़का बड़ा हुआ तो उसकी अंग्रेजी स्कूलमें भरती करा दिया
। सासने मना किया कि हमारी साधारण स्थिति है,
अँग्रेजी स्कूलमें खर्चे बहुत होते हैं और वहाँ बालकपर संस्कार
भी अच्छे नहीं पड़ते । इसपर बहू सासको डाँटती है कि यह आफत तुमने ही पैदा की है ! तुमने
ही गर्भपात करानेसे रोका था । आज माँकी यह दशा है कि अपनी सन्तान भी नहीं सुहाती ।
सासने घोर पापसे बचाया, पर बहू उसकी ताड़ना करती है । अन्तःकरणमें पापका कितना आदर है
!
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे
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