(गत
ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒भूत-प्रेतोंको
कीलित करनेवाले तांत्रिक तो उनके कर्मोंका फल भुगतानेमें सहायक ही बनते हैं, तो
फिर उनको पाप क्यों लगता है ?
उत्तर‒वे जिनको कीलित कर देते हैं, जमीनमें गाड़ देते हैं,
उन भूत-प्रेतोंका तो यह कर्मफल-भोग है,
पर उनको कीलित करनेवालोंका यह नया पाप-कर्म है,
जिसका दण्ड उनको आगे मिलेगा । जैसे,
कोई जानवरको मारता है तो जानवर अपनी मृत्यु आनेसे ही मरता है
। उसकी मृत्यु आये बिना उसको कोई मार ही नहीं सकता । परन्तु उसको मारनेवाला नया पाप
करता है; क्योंकि वह लोभ, कामना, स्वार्थ आदिको लेकर ही उसको मारता है । जब कामना आदिको
लेकर किया हुआ शुभ-कर्म भी बन्धनका कारण बन जाता है,
तो फिर जो कामना आदिको लेकर अशुभ-कर्म
करता है, वह तो पापसे बँधेगा ही ।
तात्पर्य है कि किसीको दुःख देना, तंग
करना, मारना आदि मनुष्यका कर्तव्य नहीं है, प्रत्युत
अकर्तव्य है । अकर्तव्यमें मनुष्य कामनाको लेकर ही प्रवृत्त होता है (३ । ३७) । अतः मनुष्यको कामना,
स्वार्थ आदिका त्याग करके सबके हितके लिये ही उद्योग करते रहना
चाहिये ।
प्रश्र‒जिन
भूत-प्रेतोंको बोतलमें बंद कर दिया गया है, कीलित
कर दिया गया है, वे
कबतक वहाँ जकड़े रहते हैं ?
उत्तर‒मन्त्रोंकी शक्तिकी भी एक सीमा होती है,
उम्र होती है । उम्र पूरी होनेपर जब मन्त्रोंकी शक्ति समाप्त
हो जाती है अथवा प्रेतयोनिकी अवधि (उम्र) पूरी हो जाती है,
तब वे भूत-प्रेत वहाँसे छूट जाते हैं । अगर उनकी उम्र बाकी रहनेपर
भी कोई अनजानमें कील निकाल दे, जमीनको खोदते समय बोतल फूट जाय,
पेड़के गिरनेसे बोतल फूट जाय तो वे भूत-प्रेत वहाँसे छूट जाते
हैं और अपने स्वभावके अनुसार पुनः दूसरोंको दुःख देने लग जाते हैं ।
प्रश्न‒अगर
कोई पेडमें गड़ी हुई कीलको निकाल दे,
जमीनमें गड़ी हुई बोतलको फोड़ दे तो उसमें
बन्द भूत-प्रेत उसको पकड़ेंगे तो नहीं ?
उत्तर‒वहाँसे छूटनेपर भूत-प्रेत उसको पकड़ सकते हैं;
अतः हरेक आदमीको ऐसा काम नहीं करना चाहिये । जो भगवान्के परायण
हैं, जिनको भगवान्का सहारा है, हनुमानजीका सहारा है,
वे अगर भूत-प्रेतोंको वहाँसे मुक्त कर दें तो भूत-प्रेत उनका
कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते, प्रत्युत उनके दर्शनसे उन भूत-प्रेतोंका उद्धार हो जाता है ।
सन्त-महापुरुषोंने बहुत-से भूत-प्रेतोंका उद्धार किया है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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