(गत ब्लॉगसे आगेका)
धर्मान्तरित हिन्दुओंको पुनः हिन्दूधर्ममें लानेमें अनेक कठिनाइयोंका
सामना करना पड़ता है, परिश्रम करना पड़ता है,
खर्चेके लिये बहुत रुपयोंकी व्यवस्था करनी पड़ती है,
बहुत समय लगाना पड़ता है । धर्मान्तरित लोग वापिस हिन्दू बन भी
जायँ तो उनसे हिन्दुओंको कोई विशेष लाभ नहीं होता । कारण कि जिनका अन्तःकरण इतना अशुद्ध
है कि अपने सुखभोग, स्वार्थके लिये अपने धर्मका भी त्याग कर देते हैं,
वे यदि वापिस हिन्दूधर्ममें आ भी जायें तो क्या निहाल करेंगे
? परन्तु जो हिन्दू जन्म ले रहे हैं, उनको न रोकनेमें कोई कठिनता नहीं,
कोई परिश्रम नहीं, कोई खर्चा नहीं । धर्मान्तरण रोकनेके लिये जो धन खर्च किया जाता
है, वह धन हिन्दू बालकोंके पालन-पोषण, शिक्षा आदिमें लगाया जा सकता है । जो हिन्दुओंके घरोंमें जन्म
लेंगे, उनमें हिन्दूधर्मके संस्कार स्वाभाविक एवं स्थायीरूपसे पड़ेंगे
। धर्मान्तरित लोगोंको वापिस हिन्दू बनाना अपने हाथकी बात भी नहीं है । जो अपने हाथकी बात नहीं है, उसके
लिये उद्योग करना और जो (हिन्दुओंको जन्म देना) अपने हाथकी बात है, उसको
रोकनेका उद्योग करना बुद्धिमानीका काम नहीं है ।
वास्तवमें परिवार-नियोजन-कार्यक्रमसे हिन्दुओंका जितना नुकसान
हुआ है, उतना नुकसान मुसलमानों और ईसाइयोंने भी कभी नहीं किया और वे
कर सकेंगे भी नहीं ! जितने हिन्दू धर्मान्तरित हुए हैं,
उससे कई गुना अधिक हिन्दू जन्म लेनेसे रोके गये हैं । जनवरी
८, १९९१ में समाचार-पत्रोंमें छपा था कि देशमें परिवार-नियोजन-कार्यक्रमसे अबतक लगभग
बारह करोड़ बच्चोंका जन्म रोका गया है । यह जानकारी तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्रीने राज्यसभामें
दी थी । उस समय तो परिवार-नियोजन-कार्यक्रमोमे बहुत अधिक तेजी नहीं थी । उसके बादके
वर्षोंमें इस कार्यक्रममें बहुत तेजी आयी है । एक बच्चेका भी जन्म रोकनेसे आगे उससे
होनेवाली संतानोंका जन्म भी स्वतः रुक जाता है । अतः धर्मान्तरणके घाटेकी पूर्ति तो
हो सकती है, पर परिवार-नियोजनके घाटेकी पूर्ति किसी प्रकार हो ही नहीं सकती,
असम्भव ही है ।
धर्मान्तरित लोग तो वापिस हिन्दूधर्ममें आ सकते हैं,
पर जिनका जन्म रोका गया है,
वे वापिस हिन्दुओंके यहाँ जन्म न लेकर मुसलमानों और ईसाइयोंके
यहाँ ही जन्मेंगे । कारण कि भगवान्ने कृपापूर्वक जिन जीवोंको अपना कल्याण करनेके लिये
मनुष्य-शरीर दिया है, उनको हिन्दूलोग अपने यहाँ नहीं आने देंगे तो फिर वे मुसलमानों
और ईसाइयोंके यहाँ ही जन्मेंगे । अगर हिन्दू उनके विशेष ऋणानुबन्धसे अपने यहाँ होनेवाले
जन्मको रोकेंगे तो वे सामान्य ऋणानुबन्धसे विधर्मियोंके यहाँ जन्मेंगे । कारण कि हिन्दुओंका
ज्यादा सम्बन्ध मुसलमानों और ईसाइयोंसे रहता है;
उनकी बनायी वस्तुओंसे वे सुख-आराम लेते हैं;
अतः उनके साथ ऋणानुबन्ध रहनेसे वहीं उनका जन्म होगा । तात्पर्य
यह हुआ कि मनुष्य-शरीरमें आनेवाले जीवोंको अपने यहाँ आनेसे रोककर हिदूलोग मुसलमानों
और ईसाइयोंकी संख्याको ही तीव्र गतिसे बढ़ा रहे हैं । इसलिये वास्तवमें परिवार-नियोजनके
द्वारा हिदूलोग मूलरूपसे मुसलमानों और ईसाइयोंकी ही संख्या बढ़ानेका उद्योग कर रहे हैं
। सन्तति-निरोध करके वे असली (जन्मसे ही) मुसलमान और ईसाई पैदा करनेमें सहायोग दे रहे
हैं और नकली (धर्मान्तरण करके) मुसलमान और ईसाई बननेवालोंको रोकनेका प्रयास कर रहे
हैं । कितने आश्चर्यकी बात है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे
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