(गत ब्लॉगसे आगेका)
कृत्रिम सन्तति-निरोधसे हानि
सब दृष्टियोंसे प्राणी-पदार्थोंके उत्पादन,
वृद्धि और संरक्षणमें लाभ-ही-लाभ है और उनके ह्रास अथवा नाशमें
हानि-ही-हानि है । किसी भी प्राणी और पदार्थका ह्रास अथवा नाश समष्टि शक्ति (ईश्वर
अथवा प्रकृति) के अधीन है, व्यष्टि मनुष्यके अधीन नहीं है । ईश्वर अथवा प्रकृतिके विधानमें
हस्तक्षेप करना मनुष्यकी अनधिकार चेष्टा है,
जिसका परिणाम भयंकर विनाशकारी होगा ।
पालतू पशुओंमें कुत्ता,
बिल्ली, घोड़ा, गधा, ऊँट और जंगली पशुओंमें सियार, लोमड़ी आदि असंख्य जातिके पशु हैं,
जो परिवार-नियोजन नहीं करते । कुत्ते,
बिल्ली, सूअर आदिके एक-एक बारमें अनेक बच्चे होते हैं । परन्तु परिवार-नियोजन न करनेसे क्या उनकी संख्या बढ़ गयी
? क्या उन्होंने बहुत-सी जगह रोक ली ? फिर उनकी संख्याका नियन्त्रण कौन करता है ?
जो उनकी संख्याका नियन्त्रण
करता है, वही मनुष्योंकी संख्याका भी नियन्त्रण करता है ।
भोग-भोगनेसे और ऑपरेशनसे,
कृत्रिम गर्भपातसे शरीर स्वाभाविक कमजोर होता है तथा आयुका ह्रास
है । अतः जल्दी मरनेके दो रामबाण उपाय हैं‒भोग-भोगना और ऑपरेशन (नसबंदी आदि),
गर्भपात करवाना । आश्चर्यकी बात है
कि मरना तो चाहते नहीं, पर उद्योग मरनेका ही कर रहे हैं ! घरमें आग लगाकर
हर्षित होते हैं कि अहा ! कितना बढ़िया प्रकाश रहा है कि हाथकी एक-एक रेखा साफ दीख रही
! जब परिणाम सामने आयेगा, तब होश होगा !
मनुष्यको अपना शरीर और रुपये‒दोनों बहुत प्यारे हैं और इनको
वह बहुत महत्त्व देता है । गर्भपात करवानेसे
शरीर भले ही कमजोर हो जाय और रुपये भले ही खर्च हो जाये फिर
भी गर्भपातरूपी महान् करते हैं‒यह कितने पतनका चिह्न है ! मनुष्य रुपये पैदा करता है,
रुपये मनुष्यको पैदा नहीं करते । उन रुपयोंको खर्च
करके उनके उत्पादक (मनुष्य) का नाश कर देना कितनी बेसमझी है !
गर्भ-स्थापन कर सकनेके सिवाय कोई पुरुषत्व नहीं है और गर्भ-धारण
कर सकनेके सिवाय कोई स्त्रीत्व तहीं है । पुरुषत्वके बिना पुरुष और स्त्रीत्वके बिना
स्त्री निस्तत्त्व, निःसार है । पुरुष और स्त्रीमें जो तत्त्व,
सार है, उसीको वर्तमानमें नष्ट कर रहे हैं ! अगर पुरुषमें (पुरुषत्व
न रहे और स्त्रीमें स्त्रीत्व न रहे तो वे मात्र भोगी ही रहे,
मनुष्य रहे ही नहीं । पुरुष भोगी बनकर लम्पट हो गया और स्त्री
भोग्या बनकर वेश्या हो गयी ! पुरुष पिता न बनकर लम्पट बन जाय और स्त्री माता न बनकर
वेश्या बन जाय‒इससे अधिक पतन और क्या हो सकता है ?
मनुष्य यदि मनुष्यको पैदा न कर सके तो वह मनुष्य क्या रहा,
एक नाटकीय जीव हो गया । उससे तो पशु अच्छे हैं,
जो पशुओंको पैदा तो कर सकते हैं !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे
|