प्रश्न–गुरुके
बिना उद्धार कैसे होगा; क्योंकि रामायणमें आया है – ‘गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई’
(मानस, उत्तर॰ १३।३) ?
उत्तर– उसी रामायणमें यह भी आया है –
गुरु सिष बधिर अंध का लेखा । एक न
सुनइ एक नहीं देखा ॥
हरइ सिष्य धन सोक न हरइ । सो गुरु घोर
नरक महुँ परई ॥
(मानस, उत्तर॰ ११।३-४)
तात्पर्य हुआ कि बनावटी गुरुसे उद्धार नहीं होगा
। बनाया हुआ गुरु कुछ काम नहीं करेगा । किसी-न-किसी सन्तकी बात मानेंगे, तभी उद्धार होगा और जिसकी बात माननेसे
उद्धार होगा, वही हमारा गुरु होगा । श्रीमद्भागवतके एकादश स्कन्दमें दत्तात्रेयजीने अपने चौबीस
गुरुओंका वर्णन किया है । तात्पर्य है कि मनुष्य किसीसे
भी शिक्षा लेकर अपना उद्धार कर सकता है । अतः गुरु बनानेकी जरूरत नहीं है,
प्रत्युत शिक्षा लेनेकी जरूरत है । जिसकी शिक्षा लेनेसे, जिसकी बात माननेसे
हमारा उद्धार हो जाय, वह बिना गुरु बनाये ही गुरु हो गया । अगर बात न माने तो गुरु
बनानेपर भी कल्याण नहीं होगा, उलटे पाप होगा, अपराध होगा ।
आजकल एक साथ कई
लोगोंको दीक्षा दे देते है और सामूहिक रूपसे सबको अपना चेला बना लेते है । न तो गुरुमें चेलोंके कल्याणकी चिन्ता होती है
और न तो चेलोंमें अपनी कल्याणकी लगन होती है । गुरु चेलोंका कल्याण कर सकता नहीं और चेले दूसरी जगह जा
सकते नहीं । अतः चेले बनाकर उलटे उन लोगोंके कल्याणमें बाधा लगा दी !
प्रश्न–यह
बात प्रचलित है कि निगुरेका कल्याण नहीं
होता । अतः गुरु बनाना आवश्यक हुआ ?
उत्तर‒जिसको अच्छाई-बुराईका
ज्ञान है, वह निगुरा कैसे हुआ ? अच्छाई-बुराईका ज्ञान (विवेक) सबमें है । भगवान्का नाम लेना चाहिये, उनका
स्मरण करना चाहिये, किसीको भी दुःख नहीं देना चाहिये आदि बातें सब जानते हैं । इन बातोंका ज्ञान उनको जिससे हुआ, वह
गुरु हो गया, चाहे उसको जानें या न जानें, मानें या न मानें ।
जिसने गुरु तो बना लिया, पर उनकी बात नहीं मानी, वही निगुरा होता है । उसको
अपराध लगता है । जिसने गुरु बनाया ही नहीं, उसको अपराध कैसे लगेगा ?
गुरु बनानेसे
कल्याण हो ही जायेगा ऐसा कोई विधान नहीं है । कल्याण अपनी लगनसे होता है, गुरु
बनानेसे नहीं ।
भगवान् जगत्के गुरु हैं – ‘कृष्णं
वन्दे जगद्गुरुम्’। आप जगत्से बाहर नहीं है, फिर आप निगुरे कैसे हुए ? इसलिये अच्छे महात्माओंका सत्संग करो और उनकी बातोंको काममें
लाओ । गुरु-शिष्यका सम्बन्ध जोड़ना ठीक नहीं है । वास्तवमें जो जीवन्मुक्त,
तत्त्वज्ञ, भगवत्प्रेमी महात्मा होते हैं, वे कल्याणकी बात तो बताते हैं, पर चेला
नहीं बनाते । उनको गुरु बनाये बिना उनकी इतनी बातें मानोगे, उतना लाभ तो अवश्य
होगा ही, और किसी बातको नहीं मानोगे तो पाप नहीं लगेगा। परन्तु गुरु बनाने पर बात
नहीं मानोगे तो पाप ही नहीं, अपराध लगेगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं?’
पुस्तकसे
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