।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
                      श्रीवैकुण्ठ-चतुर्दशी
         भगवान्‌ आज ही मिल सकते है



(गत ब्लॉगसे आगेका)

देवता भोगयोनि है । वे भी चाहते हैं कि भगवान्‌ हमारेको मिलेंदेवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः (गीता ११/५२) । वे भगवान्‌को चाहते तो हैं, पर भोगोंकी इच्छाको नहीं छोडते । यही दशा मनुष्योंकी है । अगर आप हृदयसे भगवान्‌को चाहो तो उनको मिलना ही पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं है । पर आप ही बाधा लगा दो कि भगवान्‌ नहीं मिलेंगे, तो फिर वे नहीं मिलेंगे ! गीतामें साफ लिखा है

अपि   चेत्सुदुराचारो   भजते   मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः    सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि    न  मे भक्तः प्रणश्यति ॥
                                                 (९/३०-३१)

अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये । कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है ।

वह तत्काल (उसी क्षण) धर्मात्मा हो जाता है और निरन्तर रहनेवाली शान्तिको प्राप्त हो जाता है । हे कुन्तीनन्दन ! मेरे भक्तका पतन नहीं होताऐसी तुम प्रतिज्ञा करो ।

तात्पर्य है कि दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी यदि अनन्यभाक् हो जाय अर्थात् भगवान्‌के सिवाय कोई चाहना न रखे तो उसको भी साधु मान लेना चाहिये; क्योंकि उसने निश्चय पक्‍का कर लिया है कि भगवान्‌ जरूर मिलेंगे ।

आप केवल भगवान्‌की ही इच्छा करो, और कोई इच्छा मत करो । न जीनेकी इच्छा करो, न मरनेकी इच्छा करो । न मानकी इच्छा करो, न बड़ाईकी इच्छा करो । न भोगोंकी इच्छा करो, न रुपयोंकी इच्छा करो । केवल एक भगवान्‌की इच्छा करो तो वे मिल जायँगे । कम-से-कम मेरी बातकी परीक्षा तो करके देखो ! भगवान्‌ आपको मिलते नहीं; क्योंकि आप उनको चाहते नहीं । आपके भीतर रुपयोंकी चाहना हो तो भगवान्‌ बीचमें कूदकर क्यों पड़ेंगे ? संसारमें सबसे रद्दी वस्तु रुपया है । रुपयोंसे रद्दी चीज दूसरी कोई है ही नहीं । ऐसी रद्दी चीजमें आपका मन अटका हुआ हो तो भगवान्‌ कैसे मिलेंगे ? रुपये देकर आप भोजन, वस्त्र, सवारी आदि खरीद सकते हो, पर रुपया खुद न तो खानेके काम आता है, न पहननेके काम आता है, न सवारीके काम आता है । तात्पर्य है कि रुपये काम नहीं आते, प्रत्युत उनका खर्च काम आता है ।


परमात्मा इच्छामात्रसे मिलते हैं । उनको रोकनेकी ताकत किसीमें भी नहीं है । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ काम नहीं करता, उल्टे काम करनेमें आपको बाधा लगाता है, पर जब वह रोने लगता है, तब सब घरवाले उसके पक्षमें हो जाते हैं । सास-ससुर, देवर-जेठ सभी कहते हैं कि बहू ! बालक रो रहा है, उसको उठा ले । माँको सब काम छोड़कर बालकको उठाना पडता है । बालकका एकमात्र बल रोना ही हैबालानां रोदनं बलम् रोनेमें बड़ी ताकत है । आप सच्‍चे हृदयसे व्याकुल होकर भगवान्‌के लिये रोने लग जाओ तो जितने भगवान्‌के भक्त हुए हैं, सन्त-महात्मा हुए हैं, वे सब-के-सब आपके पक्षमें हो जायँगे और भगवान्‌को उलाहना देंगे कि आप मिलते क्यों नहीं ? वे ही भगवान्‌के सास-ससुर आदि हैं !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे