।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
  मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०७४, शनिवार
   भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय



भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

१.   भगवत्प्राप्तिकी सच्ची लगन होना

(गत ब्लॉगसे आगेका)

(४)

असत्‌को मैं’ और मेरा’ मान लिया-मूलमें यहाँसे भूल हुई । यही मूल भूल है । इस भूलको मिटाकर अपने निर्विकार स्वरूपमें स्थित हो जाओ । जबतक मूल भूल न मिटे, तबतक चैन नहीं आना चाहिये । छोटा बालक हर समय अपनी माँकी गोदीमें रहना चाहता है । गोदीसे नीचे उतरते ही वह रोने लग जाता है । आप भी हर समय सत् (भगवान्)-की गोदीमें रहो । असत्‌में जाते ही रोने लग जाओ कि अरे ! कहाँ आ पड़े हम तो गोदीमें ही रहेंगे । फिर असत्‌का सम्बन्ध सुगमतासे छूट जायगा ।

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मैं शरीरसे अलग हूँ‒ऐसा अनुभव न हो तो भी इसको जबर्दस्ती मान लो । जैसे बीमारीसे छूटनेके लिये आप कड़वी-से-कड़वी दवा, चिरायते आदिका काढ़ा भी आँखें मीचकर पी लेते हो, ऐसे ही स्वस्थ होनेके लिये आप मैं अलग हूँ’ऐसा मान लो । फिर भी ठीक अलग न दीखे तो व्याकुल हो जाओ कि अलग अनुभव जल्दी कैसे हो ! व्याकुलता जोरदार हो जायगी तो चट अनुभव हो जायगा । परन्तु भोगोंमें रस लेते रहोगे, सुख लेते रहोगे तो चाहे कितना ही पढ़ जाओ, पण्डित बन जाओ, चारों वेद पढ़ जाओ, पर शरीरसे अलगावका अनुभव कभी नहीं होगा ।

(६)

जिस दिन साधकके भीतर यह उत्कट अभिलाषा जाग्रत् हो जाती है कि परमात्मा अभी ही प्राप्त होने चाहिये, अभी.....अभी.....अभी, उसी दिन उसे परमात्मप्राप्ति हो सकती है ! साधककी योग्यता, अभ्यास आदिके बलपर परमात्माकी प्राप्ति हो जाय‒यह सर्वथा असम्भव है । परमात्माकी प्राप्ति केवल उत्कट अभिलाषासे ही हो सकती है । आप सगुण या निर्गुण, साकार या निराकार, किसी भी तत्त्वको मानते हों, उसके बिना आपसे रहा नहीं जाय, उसके बिना चैन न पड़े । भक्तिमती मीराबाईने कहा है‒‘हेली म्हास्यूँ हरि बिनु रह्यो न जाय’ हे सखी, मुझसे हरिके बिना रहा नहीं जाता ।’ निर्गुण उपासकोंने भी यही कहा है‒

                         चितवन मोरी तुमसे लागी पिया ।
                              दिन नहि भूख रैन नहि निद्रा,
                              छिन छिन व्याकुल होत हिया ॥

तत्त्वकी प्राप्तिके बिना दिनमें भूख नहीं लगती और रातमें नींद नहीं आती ! आप कैसे मिलें ! क्या करूँ ! हृदयमें क्षण-क्षण व्याकुलता बढ़ रही है । उसे छोड़कर और कुछ सुहाता नहीं । सन्तोंने भी कहा है‒

नारायन हरि  लगन  में,  ये  पाँचों  न  सुहात ।
विषयभोग, निद्रा, हँसी, जगत प्रीत, बहु बात ॥

ये विषयभोगादि पाँचों चीजें जिस दिन सुहायेंगी नहीं, अपितु कड़वी अर्थात् बुरी लगेंगी, भगवान्‌का वियोग सहा नहीं जायगा, उसी दिन प्रभु मिल जायँगे !


  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे