।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७४, शनिवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताभगवान्की प्राप्तिके लिये कौन-सी साधना करनी चाहिये ?

स्वामीजीतरह-तरहकी साधनाओंसे भगवान् नहीं आते हैं । भगवान् आते हैं भीतरकी असली चाहनासे । भगवान्की प्राप्तिके लिये केवल उत्कण्ठा चाहिये । जैसे भगवान् एक ही हैं, ऐसे ही उनकी प्राप्तिकी इच्छा भी एक ही हो ।

श्रोता आप कहते हैं कि मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिये, पर शरीरको तो रोटी-कपड़ा चाहिये ही ?

स्वामीजीमैंने ‘मेरेको नहीं चाहिये’‒यह कहा है, ‘शरीरको नहीं चाहिये’‒यह नहीं कहा है । शरीर और रोटी-कपड़ा एक ही है । जिस जातिका रोटी-कपड़ा है, उसी जातिका शरीर है । परन्तु मैं भगवान्का अंश हूँ इसलिये मेरे भगवान् हैं और मेरेको केवल भगवान् चाहिये । मेरे लिये भगवान्के सिवाय अन्य कोई आवश्यकता है नहीं, हुई नहीं, होगी नहीं, हो सकती नहीं । आप अपने-आपको केवल भगवान्का ही समझें; क्योंकि जीवमात्र ईश्वरका अंश है । ईश्वरके सिवाय जीवको किसी चीजकी जरूरत नहीं है । आप कहेंगे कि हमने सन्तोंको देखा है, अच्छे-अच्छे महात्मा भी रोटी माँगते हैं । परन्तु अगर वे शरीरको अपना मानते हैं तो वे महात्मा नहीं हैं । शरीर अपना नहीं है, संसारका है ।

श्रोताजब संसारमें जीवका कुछ भी नहीं है तो भगवान्ने जीवको पैदा ही क्यों किया ?

स्वामीजीभगवान्ने भूल की तो उनको माफ कर दो !! आप बतायें कि जो घरका मालिक होता है, वह बालकोंके लिये सच्चा (असली) घोड़ा लाता है कि मिट्टी (प्लास्टिक)-का घोड़ा लाता है ? बालक मिट्टीके घोड़ेमें राजी होते हैं, इसलिये वह पैसे खर्च करके भी मिट्टीका घोड़ा लाता है । इसी तरह आप संसारकी चीजोंसे राजी होते हो, इसलिये भगवान् संसार देते हैं । आप इनमें राजी होना छोड़ दो तो भगवान् कभी मना करेंगे ही नहीं । मना करें तो मेरा कान पकड़ना !

हम सबका सम्बन्ध भगवान्के साथ है, संसारके साथ है ही नहीं ।

आप सबको सुनानेके लिये एक बात मेरे मनमें आयी है । विचार करें, अपना किसी वस्तुपर वश चलता है क्या ? शरीरपर, मनपर, बुद्धिपर, अहंकारपर प्राणोंपर, वस्तुओंपर, रुपयोंपर, कुटुम्बपर, सगे-सम्बन्धियोंपर, घरपर, जमीनपर, जायदादपर, किसीपर भी अपना वश चलता है क्या ? सब भाई-बहन इस बातपर विचार करें । वस्तु, व्यक्ति और क्रियाइन तीनोंपर किसीका वश चलता है क्या ? इनको हम जैसा चाहें, वैसा रख सकते हैं क्या ? वस्तुको, व्यक्तिको, क्रियाको, मानको, आदरको, सत्कारको, प्रशंसाको, वाह-वाहको जैसा चाहें, वैसा रख सकते हैं क्या ? इनपर हमारा वश चलता है क्या ? इनपर हमारी स्वतन्त्रता चलती है क्या ? इसपर विचार करो । आपको साधन करना हो तो यह साधन करनेकी खास बात है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे