।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
  पौष कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
   भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय



भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


(गत ब्लॉगसे आगेका)

३. सब जगह भगवान्‌को देखना

(१)

अगर हम यह मान लें, विश्वास कर लें, स्वीकार कर लें, निश्चय कर लें, धारणा कर लें कि परमात्मा सब जगह हैं तो बहुत सुगमतासे परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ।

(२)

जड़-चेतन, स्थावर-जंगमरूपसे जो कुछ देखने, सुनने, सोचनेमें आ रहा है, वह सब अविनाशी भगवान् ही हैं । इसका अनुभव करनेके लिये साधकको दृढ़तासे यह मान लेना चाहिये कि मेरी समझमें आये या न आये, अनुभवमें आये या न आये, स्वीकार हो या न हो, पर बात यही सच्ची है ।.......उसको वृक्ष, नदी, पहाड़, पत्थर, दीवार आदि जो कुछ भी दीखे, उसमें अपने इष्ट भगवान्‌को देखकर वह प्रार्थना करे कि हे नाथ ! मुझे अपना प्रेम प्रदान करो, हे प्रभो आपको मेरा नमस्कार हो ।’ ऐसा करनेसे उसको सब जगह भगवान् दीखने लग जायँगे; क्योंकि वास्तवमें सब कुछ भगवान् ही हैं ।

(३)

जो सम्पूर्ण संसारमें समानरूपसे परमात्माको ही देखता है, वह उत्तम भक्त है‒

सर्वभूतेषु यः पश्येद् भगवद्भावमात्मनः ।
भूतानि भगवत्यात्मन्येष भागवतोत्तमः ॥
                                  (श्रीमद्भागवत ११ । २ । ४५)

उत्तम भक्तकी बातको यदि आरम्भमें ही मान लिया जाय तो कितने लाभकी बात है ! पहले आचार्य होकर फिर क-ख-ग सीखना है ! सब कुछ भगवान् ही हैं‒यह मान लें तो हम आचार्य हो गये ! अब नाम-जप करें, कीर्तन करें, सत्संग करें तो बड़ी सुगमतासे भगवत्प्राप्ति हो जायगी ।

(४)

अपना कोई एक अत्यन्त प्रिय व्यक्ति मिल जाय तो बड़ा आनन्द आता है । परन्तु जब सब रूपोंमें ही अपने अत्यन्त प्रिय इष्ट भगवान् मिलें तो आनन्दका क्या ठिकाना है ! इसलिये सब रूपोंमें अपने प्यारेको देख-देखकर प्रसन्न होते रहें, मस्त होते रहे । कभी भगवान् सौम्य-रूपसे आते हैं, कभी क्रूर-रूपसे आते हैं, कभी ठण्ड-रूपसे आते हैं, कभी गरमी-रूपसे आते हैं, कभी वायु-रूपसे आते हैं, कभी वर्षा-रूपसे आते हैं, कभी बिजली-रूपसे चमकते हैं, कभी मेघ-रूपसे गर्जना करते हैं । तात्पर्य है कि अनेक रूपोंसे भगवान्-हीं-भगवान् आते हैं । जहाँ मन जाय, वहीं भगवान् हैं । अब मनको एकाग्र करनेकी तकलीफ क्यों करें ? मनको खुला छोड़ दें । यह दृढ़ विचार कर लें कि मेरा मन जहाँ भी जाय, भगवान्‌में ही जाता है और मेरे मनमें जो भी आये, भगवान् ही आते हैं; क्योंकि सब कुछ एक भगवान् ही हैं । भगवान् कहते हैं‒

यो मां पश्यति सर्वत्र  सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
                                               (गीता ६ । ३०)

जो भक्त सबमें मुझे देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’


जैसे सब जगह बर्फ-ही-बर्फ पड़ी हो तो बर्फ कैसे छिपेगी ? बर्फके पीछे बर्फ रखनेपर भी बर्फ ही दीखेगी ऐसे ही जब सब रूपोंमें भगवान् ही हैं, तो फिर वे कैसे छिपें, कहाँ छिपें और किसके पीछे छिपें ?

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे