।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
  पौष कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७४, बुधवार
   भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय



भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

१.   भगवत्प्राप्तिकी सच्ची लगन होना

(गत ब्लॉगसे आगेका)

(११)

आपने जोरसे भजन, जप, तप किया, परन्तु भगवान् मिलते हैं कि नहीं मिलते’यह सन्देह है तो भगवान् नहीं मिलेंगे । मैं पापी हूँ, भगवान् नहीं मिलेंगे’ तो भगवान् नहीं मिलेंगे । मैं अधिकारी नहीं हूँ’ तो भगवान् नहीं मिलेंगे । मैं कैसा ही हूँ, पर भगवान् मिलने चाहिये’ तो भगवान् मिल जायँगे । केवल अपनी चाहना बढ़ाओ ।

२. सब काम भगवान्‌के लिये ही करना

(१)

आपके कल्याणकी बड़ी सुगम बात बतायी जाती है । एक बात हर समय याद रखो कि मैं जो भी काम करता हूँ, भगवान्‌का काम करता हूँ । मैं सब काम भगवान्‌का ही करता हूँ‒यह बात पक्की कर लो, फिर भगवान् आपसे छिपेंगे नहीं । शौच-स्नान करूँ तो भगवान्‌का काम, कपड़ा धोऊँ तो भगवान्‌का काम, झाड़ू दूँ तो भगवान्‌का काम, सोता हूँ तो भगवान्‌का काम, भोजन करूँ तो भगवान्‌का काम; आठों पहर कोई भी काम करूँ तो भगवान्‌का ही काम करता हूँ । बहनें-माताएँ मान लें कि रसोई बनाती हूँ तो भगवान्‌के लिये बना रही हूँ, बालकोंका पालन करती हूँ तो भगवान्‌का काम करती हूँ, पतिकी तथा सास-ससुरकी सेवा करती हूँ तो भगवान्‌का काम करती हूँ, आदि । इतनी बात पकड़ लो तो सुगमतासे भगवान्‌की प्राप्ति हो जायगी ।

()

आप चलना-फिरना, उठना-बैठना, सोना-जगना, खाना-पीना आदि जो भी काम करें, भगवान्‌के लिये ही करें तो आपको सुगमतापूर्वक भगवत्प्राप्ति हो जायगी । गीतामें भगवान्‌ने साफ कहा है‒

यत्करोषि यदश्नासि   यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय     तत्कुरुष्व  मदर्पणम् ॥
शुभाशुभफलैरेवं      मोक्ष्यसे    कर्मबन्धनैः ।
सन्न्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥
                                            (गीता ९ । २७-२८)

हे कुन्तीपुत्र ! तू जो कुछ करता है, जो कुछ भोजन करता है, जो कुछ यज्ञ करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे । इस प्रकार मेरे अर्पण करनेसे कर्मबन्धनसे और शुभ (विहित) और अशुभ (निषिद्ध) सम्पूर्ण कर्मोंके फलोंसे तू मुक्त हो जायगा । ऐसे अपने-सहित सब कुछ मेरे अर्पण करनेवाला और सबसे सर्वथा मुक्त हुआ तू मुझे ही प्राप्त हो जायगा ।’

पैदल चलें तो एक-एक कदम भगवान्‌के अर्पण करें । यहाँ आयें तो भगवान्‌का काम, जायँ तो भगवान्‌का काम, बैठें तो भगवान्‌का काम, सुनें तो भगवान्‌का काम, सुनायें तो भगवान्‌का काम । हरेक काम प्रसन्नतापूर्वक भगवान्‌के लिये करें तो सब-का-सब भजन हो जायगा । केवल भाव बदलना है । यह संसारमें रहते हुए ही परमात्माको प्राप्त करनेकी युक्ति है । संसारका त्याग करके एकान्तमें रहकर भजन करनेवाले सन्त जिस तत्त्वको प्राप्त करते हैं, उसी तत्त्वको आप गृहस्थमें रहते हुए ही प्राप्त कर सकते हैं । भगवान्‌का काम करनेवाले संसारमें रहते हुए भी संसारमें नहीं रहते, किन्तु भगवान्‌में रहते हैं ।


  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे