(गत ब्लॉगसे आगेका)
गायत्री और ॐ पर सबका अधिकार नहीं है; परन्तु राम-नामपर सबका अधिकार है । जो मानता है कि ॐ के जपसे मैं ऊँचा हो गया,
वह वास्तवमें नीचा हो गया । यह दयालु सन्तोंकी
कृपा है कि उन्होंने राम-नामका
इतना प्रचार कर दिया कि सबको मालूम हो गया ! आज जो राम-नाम सस्ता दीखता है, यह दयालु सन्तोंकी कृपाके कारण है
!
श्रोता‒मेरी लड़कीकी
अकाल मृत्यु हो गयी और
वह मुझे प्रेतरूपमें दीखती है । क्या उपाय है ?
स्वामीजी‒किसी अच्छे ब्राह्मणसे गयाश्राद्ध कराओ
।
एक विलक्षण बात है ! सब भाई-बहन विशेष
ध्यान दें । बहुत बढ़िया बात है ! सब सावधान होकर सुनें । अगर
इस बातको मान लें तो निहाल हो जायँ, इसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह
नहीं है ! यह बात प्रसिद्ध है कि जीव चौरासी लाख योनियोंमें घूमता
है । चौरासी लाख योनियोंमें घूमता हुआ भी जीव किसी शरीरके साथ नहीं रहा तो इस शरीरके
साथ कैसे रहेगा ? इस शरीरके साथ भी रहेगा नहीं । अतः वास्तवमें शरीर हमारा नहीं है, हम शरीरके नहीं हैं, हम शरीरमें
रहनेवाले नहीं हैं । अगर यह बात ठीक समझ लें तो आप आज ही जीवमुक्त हैं !
हम अशरीरी हैं, शरीरसे बिल्कुल अलग हैं । इसमें अभ्यास
काम नहीं करेगा । अभ्यासकी जरूरत नहीं है । अभ्यास नयी स्थिति पैदा करता है,
तत्त्वज्ञान पैदा नहीं करता । जब हम चौरासी लाख शरीरोंसे अलग हुए तो
इस शरीरसे भी अलग होंगे । विवेकसे केवल इतना ही जानना है कि आप शरीरसे अलग हैं,
शरीर आपसे अलग है । यह आप अभी, तत्काल जान लो ।
शरीरसे अपनेको अलग अनुभव करना ही जीवन्मुक्ति है, तत्त्वज्ञान है तत्त्वकी प्राप्ति है !
श्रोता‒सूक्ष्मशरीर और कारणशरीर तो साथ रहते हैं
?
स्वामीजी‒नहीं । जबतक सूक्ष्मशरीर और कारणशरीर
साथ रहते हैं,
तबतक जन्म-मरण होता है । इनसे भी अलग हो जाय तो
मुक्ति हो जाती है । इनको अपना माना है, तभी साथ रहते हैं । अपना
नहीं मानो तो साथ कैसे रहेंगे ? आप सूक्ष्मशरीर और कारणशरीरसे
अलग हो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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