।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७४, शनिवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

गायत्री और ॐ पर सबका अधिकार नहीं है; परन्तु राम-नामपर सबका अधिकार है । जो मानता है कि ॐ के जपसे मैं ऊँचा हो गया, वह वास्तवमें नीचा हो गया । यह दयालु सन्तोंकी कृपा है कि उन्होंने राम-नामका इतना प्रचार कर दिया कि सबको मालूम हो गया ! आज जो राम-नाम सस्ता दीखता है, यह दयालु सन्तोंकी कृपाके कारण है !

श्रोतामेरी लड़कीकी अकाल मृत्यु हो गयी और वह मुझे प्रेतरूपमें दीखती है क्या उपाय है ?

स्वामीजीकिसी अच्छे ब्राह्मणसे गयाश्राद्ध कराओ ।

एक विलक्षण बात है ! सब भाई-बहन विशेष ध्यान दें । बहुत बढ़िया बात है ! सब सावधान होकर सुनें । अगर इस बातको मान लें तो निहाल हो जायँ, इसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है ! यह बात प्रसिद्ध है कि जीव चौरासी लाख योनियोंमें घूमता है । चौरासी लाख योनियोंमें घूमता हुआ भी जीव किसी शरीरके साथ नहीं रहा तो इस शरीरके साथ कैसे रहेगा ? इस शरीरके साथ भी रहेगा नहीं । अतः वास्तवमें शरीर हमारा नहीं है, हम शरीरके नहीं हैं, हम शरीरमें रहनेवाले नहीं हैं । अगर यह बात ठीक समझ लें तो आप आज ही जीवमुक्त हैं !

हम अशरीरी हैं, शरीरसे बिल्कुल अलग हैं । इसमें अभ्यास काम नहीं करेगा । अभ्यासकी जरूरत नहीं है । अभ्यास नयी स्थिति पैदा करता है, तत्त्वज्ञान पैदा नहीं करता । जब हम चौरासी लाख शरीरोंसे अलग हुए तो इस शरीरसे भी अलग होंगे । विवेकसे केवल इतना ही जानना है कि आप शरीरसे अलग हैं, शरीर आपसे अलग है । यह आप अभी, तत्काल जान लो । शरीरसे अपनेको अलग अनुभव करना ही जीवन्मुक्ति है, तत्त्वज्ञान है तत्त्वकी प्राप्ति है !

श्रोतासूक्ष्मशरीर और कारणशरीर तो साथ रहते हैं ?

स्वामीजीनहीं । जबतक सूक्ष्मशरीर और कारणशरीर साथ रहते हैं, तबतक जन्म-मरण होता है । इनसे भी अलग हो जाय तो मुक्ति हो जाती है । इनको अपना माना है, तभी साथ रहते हैं । अपना नहीं मानो तो साथ कैसे रहेंगे ? आप सूक्ष्मशरीर और कारणशरीरसे अलग हो ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे