।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल एकादशी, वि.सं.-२०७५, मंगलवार
                    कामदा एकादशी-व्रत  
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

विचार करें, संसार और शरीरकी सहायताके बिना हम स्वतन्त्रतासे क्या कर सकते हैं ? हम कामना और ममता-रहित हो सकते हैं । कामना और ममता-रहित होनेमें शरीर-संसारकी, किसी वस्तु, व्यक्ति, विद्या, योग्यता आदिकी आवश्यकता नहीं है । गीतामें आता है

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥
                                              (गीता २ । ७१)

जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंतारहित होकर आचरण करता है, वह शान्तिको प्राप्त होता है ।

हम शरीर-संसारकी सहायताके बिना कामना, स्पृहा (जरूरत), ममता और अहंकारका त्याग कर सकते हैं । इनका त्याग करनेसे परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी । इसमें सब-के-सब स्वतन्त्र हैं, कोई पराधीन नहीं है । गीताने चार बातें कही हैं, पर मैं कहता हूँ कि आप केवल दो बातोंको स्वीकार कर लें कि मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये । मेरा कुछ नहीं हैइसमें ममताका त्याग है, और मेरेको कुछ नहीं चाहियेइसमें कामनाका त्याग है । ममता और कामनाको आप चाहें तो अभी छोड़ सकते हैं । इसमें समय नहीं लगता । न समय की जरूरत है, न सहायताकी जरूरत है, न पढ़ाईकी जरूरत है, न योग्यताकी जरूरत है । आप जैसे हो, वैसे ही ममता-कामनाको छोड़ सकते हो । जप-ध्यान आदि करनेमें कई बाधाएँ, विघ्न होते हैं, पर ममता-कामनाका त्याग करनेमें कोई विघ्न, अटकाव नहीं है । इनका त्याग करनेमें आपको कोई कमी नहीं आयेगी ।

श्रोतास्पृहा क्या है ?

स्वामीजीजरूरतको स्पृहा कहते हैं । जब हम बटवृक्षके नीचे रहते थे, तब एक साधु आये । उन्होंने कहा कि भिक्षा लेनेके लिये एक बर्तनकी जरूरत है, भले ही मिट्टीका हो । मैंने कहा कि मेरा स्वयं कहनेका तो स्वभाव नहीं है, पर कोई पूछेगा तो कह देंगे । पाँच-सात दिनके बाद वे साधु आकर बोले कि अब मत कहना; क्योंकि बर्तनके बिना पाँच-सात दिन निकल गये तो महीना भी निकल जायगा, महीना निकल जायगा तो वर्ष भी निकल जायगा, वर्ष निकल जायगा तो उम्र भी निकल जायगी ! यह स्पृहा (जरूरत)-का त्याग है !

हम सन्तोंको भी पूछ सकते हैं कि महाराज ! कोई जरूरत हो तो बताओ, पर ऐसा नहीं पूछ सकते कि कोई कामना हो तो बताओ ! कोई तृष्णा हो तो बताओ !


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे