।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७५, बुधवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताआपने कहा कि ममताका त्याग करो, पर ममताका त्याग हो नहीं सकता !

स्वामीजीआप कहते हो कि ममताका त्याग नहीं हो सकता, हम कहते हैं कि आप ममता रख सकते ही नहीं ! ममताको रख लें, ऐसी ताकत आपमें है ही नहीं ! पहले छोटी अवस्थामें खिलौनोंमें ममता थी, पीछे रुपयोंमें, बेटे-पोतोमे ममता हो गयी । आपकी ममता बदलती रहती है । आपने मकान बेचकर रुपये ले लिये तो मकानमें ममता नहीं रही, रुपयोंमें ममता हो गयी । रुपये किसीमें लगा दिये तो उसमें ममता हो गयी । ममता बदलती है, रहती नहीं । ममता टिक सकती ही नहीं !

अभी हमने ऐसा विचार किया है कि व्याख्यान देते तो बहुत वर्ष हो गये, अब आपको ऐसी बात बतायें, जिससे आपको परमात्माका अनुभव हो जाय । अनुभव तभी होगा, जब संसारकी ममता छूटेगी । संसारमें ममता रखोगे तो परमात्माकी प्राप्ति कैसे होगी? मीराबाईने कहा‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई संसारमें ममता नहीं छूटेगी तो परमात्मामें अपनापन कैसे करोगे ?

कबीर  मनुआँ  एक  है,  भावे  जिधर  लगाय ।
भावे हरि की भगति करे, भावे विषय कमाय ॥

आप ममताको छोड़ना न चाहो तो अलग बात है, पर ममताको आप रख सकते ही नहीं । ममता रहेगी नहीं, रहेगी नहीं, रहेगी नहीं ! पिछले जन्ममें भी स्त्री-पुत्र, माता-पिता आदि थे ही, पर अब वे याद ही नहीं हैं ! ऐसे ही इस जन्मकी भी ममता छूटेगी । किसीकी भी यह कहनेकी हिम्मत नहीं है कि मैं ममता छोडूँगा ही नहीं ! जो स्वतः छूटनेवाली है, उसीको छोड़नेकी बात मैं कहता हूँ । वह छूटेगी तो फायदा नहों होगा, पर आप छोड़ दोगे तो फायदा होगा । जिसको आप रख नहीं सकते, उसको छोड़नेमें आपको क्या बाधा लगी ?

एक दरिद्र है और एक विरक्त, त्यागी है । बाहरसे देखनेपर दोनों बराबर दीखते हैं । दोनोंकी अंटीमें दाम नहीं, पैरमें जूती नहीं, तनपर पूरे कपड़े नहीं ! परन्तु भीतरसे क्या वे एक समान हैं ?


संसारमें ‘ममता’ होती है और भगवान्‌में ‘आत्मीयता’ होती है । संसारमें आत्मीयता होती ही नहीं । कारण कि संसार प्रकृतिका कार्य है और आप भगवान्‌के अंश हो । इसलिये भगवान्‌में आत्मीयता कभी छूटेगी नहीं । वह आत्मीयता अभी मौजूद है, पर उधर आपकी दृष्टि नहीं है । ममताके कारण आत्मीयता दीखती नहीं । ममता छोड़ दो तो दीखने लग जायगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे