।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७५, रविवार
                      श्राद्धकी अमावस्या
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि साधन करना तो बादमें है, सबसे पहले तो उद्देश्य बनाना है कि हमें संसारमें, जन्म-मरणमें जाना है या अपना कल्याण करना है । इसमें एक विलक्षण बात है कि परमात्मामें लगे हुएके द्वारा संसारका अहित नहीं होता और संसारमें लगे हुएको परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती । जो परमात्मप्राप्तिमे लग जाता है, उसके द्वारा संसारकी सेवा होती है, संसारका हित होता है, संसारको लाभ होता है, और अपना कल्याण तो होता ही है । दोनोंको लाभ होता है । परन्तु संसारमें लगनेसे अपनेको भी लाभ नहीं होता और संसारको भी लाभ नहीं होता । परमात्मामें ही लगे हुए गोस्वामीजी महाराज-जैसे सन्तोंके द्वारा दुनियाका बड़ा भारी हित होता है । परन्तु संसारमें लगे हुए मनुष्यके द्वारा अपना और दुनियाका भी लाभ नहीं होता, प्रत्युत केवल नुकसान-ही-नुकसान होता है ! कारण यह है कि मनुष्यशरीर केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही मिला है । मनुष्यशरीर सुख भोगनेके लिये नहीं है‘एहि तन कर फल बिषय न भाई’ (मानस, उत्तर ४४ । १)

श्रोतारामजीके एक ही रूपका ध्यान करें या वनवासी आदि रूपोंका भी ध्यान करें ?

स्वामीजीएक ही रूपका ध्यान करो । भगवान्‌की लीलाएँ अनेक तरहकी हैं, पर ध्यान एक ही होना चाहिये । तभी ध्यान जमेगा । ध्यानको बदलो मत ।

श्रोताकभी-कभी अचिन्तनकी स्थिति होती है

स्वामीजीउसमें भगवान्‌की मरजी मानो । कुछ भी चिन्तन मत करो । चिन्तन करनेवाला भी भगवान्‌के चरणोंमें लीन हो जाय । चिन्तन करनेवाला भी नहीं रहे ! केवल भगवान् ही रह जायँ, मैं रहे ही नहीं !

श्रोताभगवान्‌के दर्शनके लिये यदि खाना-पीना छोड़कर हठपूर्वक बैठ जायँ तो क्या भगवान् हमारे पास नहीं आयेंगे ?

स्वामीजीहठ नहीं करना चाहिये । इसलिये मैं ‘बजरंगबाण’ के पाठको भी बढ़िया नहीं मानता । इष्टको दबाना नहीं चाहिये । अपने इष्टदेवसे प्रार्थना करना तो ठीक है, पर उनपर दबाव डालना, उनको शपथ या दुहाई देकर कार्य करनेके लिये विवश करना, उनसे हठ करना ठीक नहीं है । ‘बजरंगबाण’ में हनुमान्जीपर ऐसा ही अनुचित दबाव डाला गया है; जैसे‘इन्हें मारु तोहि सपथ राम की’, ‘सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै’, ‘जनकसुता हरिदास कहावौ । ता की सपथ विलंब न लावौ ॥’, ‘उठ उठ चलु तोहि राम दोहाई’ । इस तरह दबाव डालनेसे इष्टदेव राजी नहीं होते, उल्टे नाराज होते हैं ।

हम किसीको दबाकर काम करायेंगे तो वे राजी कैसे होगा ? हमारा लड़का है और हम लड़कीवालेको दबायें कि इतने रुपये दो तो यह पाप है पाप ! दूसरा दे न दे, उसकी मरजी । किसीको भी बाँधो मत । सबको खुला रखो । जो हमारा इष्टदेव कहलाता है, उसको भी बाँधना पाप है, अन्याय है !


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे