जैसे बच्चा माँके पीछे पड़ जाता है कि मेरेको लड्डू दे दे,
ऐसे ही आप भगवान्के पीछे पड़ जाओ कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । रात और दिन पीछे ही पड़ जाओ,
छोड़ो ही नहीं ! एक ही बात कि भगवान्को भूलूँ नहीं‒ ‘सबु करि मागहिं एक फलु राम चरन रति होउ’ (मानस, अयोध्या॰ १२९) । सब तीर्थ, व्रत आदिका एक ही फल माँगे कि भगवान्को भूलें नहीं । हरदम
लगन लग जाय कि ‘हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं; हे मेरे स्वामी ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ तो आपकी स्थिति बदल जायगी । काम,
क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, पाखण्ड, दिखावटीपना आदि सब नष्ट हो जायँगे । राम,
कृष्ण, शिव, शक्ति, गणेश सूर्य आदि जो आपका इष्ट हो,
उसमें सच्चे हृदयसे लग जाओ कि ‘हे नाथ ! हे मेरे स्वामी ! मैं आपको भूलूँ नहीं । मेरेको और
कुछ नहीं चाहिये’ । इसको छोड़ो मत । फिर देखो,
पन्द्रह-बीस दिनोंमें,
महीनेभरमें आपमें विलक्षणता आ जायगी । भगवान्को याद करनेसे
आपका अन्तःकरण शुद्ध, निर्मल हो जायगा, एकदम ठीक हो जायगा ।
शुद्ध-अशुद्ध, पवित्र-अपवित्र सब अवस्थाओंमें हरदम भगवान्से कहते रहो कि ‘हे प्रभो ! ऐसी कृपा करो कि आपको भूलूँ नहीं’ । यह वहम नहीं
रखना कि अशुद्ध अवस्थामें भगवान्को याद नहीं करना है । भगवान्के पीछे ही पड़ जाओ
! न खुद चैनसे रहो, न भगवान्को चैन लेने दो ! भगवान् खुश हो जायँगे
!
जबतक भोग और संग्रहमें मनुष्यकी वृत्ति लगी हुई है,
तबतक वह परमात्माकी प्राप्ति नहीं कर सकता । उसके
अन्तःकरणमें ‘मुझे परमात्माको प्राप्त करना है’‒यह वृत्ति ठहर नहीं सकती । गीतामें साफ लिखा है‒
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥
(गीता २ । ४४)
भोग भोगनेका खराब स्वभाव पड़ जायगा तो वह जन्म-जन्मान्तरतक
आपको आफत-ही-आफत, दुःख-ही-दुःख देगा,
और रुपयोंका कितना ही संग्रह कर लो,
एक कौड़ी भी आपके साथ चलेगी नहीं । अगर आपको भोग और संग्रह
बढ़िया दीखता हो तो मुझे समझा दो । अगर मेरी समझमें आ जायगा तो फिर मैं वैसा ही
कहने लग जाऊँगा ! परन्तु मेरी समझसे यह महान् नरकोंमें जानेका रास्ता है ! मैं
रुपयोंकी निन्दा नहीं करता हूँ । रुपयोंमें जो लोभ है, भोगोंमें
जो आसक्ति है, यह महान् अनर्थ करनेवाली है । इसमें मुझे सन्देह
नहीं है । जड़ पदार्थोंमें जो खिंचाव है,
यही जन्म-मरण देनेवाला है ।
मनुष्यके लिये रुपये बहुत जरूरी हैं‒ऐसी बात बहुत सुननेमें आती है । अगर आपके
लिये रुपये जरूरी हैं तो आपके पास रुपये अपने-आप आयेंगे,
यह पक्की बात है ! जो आदमी
भगवान्के भजनमें लगा है, उसके लिये भोगोंमें आसक्त होनेकी और रुपयोंका
लोभ करनेकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है । आवश्यक वस्तु उसके पास अपने-आप आयेगी । हाँ, यह हो सकता है कि पहले ज्यादा आसक्ति करनेके कारण कुछ
दिनोंके लिये आपको ज्यादा तंगी भोगनी पड़े,
पर पीछे आपको इतनी वस्तुएँ मिलेंगी,
जो कामना करनेवालोंको भी नहीं मिलतीं ! रुपया चाहनेवालोंको
जो रुपया नहीं मिलता, ऐसा रुपया मिलेगा ! उल्टे आपको यह विचार होगा कि इन
रुपयोंका करेंगे क्या !
त्याग करोगे तो कुछ दिन दुःख पाना पड़ेगा,
थोड़ा प्रायश्चित्त करना पड़ेगा,
पर बादमें कोई कमी नहीं रहेगी । परन्तु लोभके रहते हुए
त्याग समझमें आता नहीं !
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