श्रोता‒अमुक काम अच्छा है या मन्दा है‒इसका निर्णय किस
आधारपर करें ?
स्वामीजी‒जिसमें अपना स्वार्थ है,
वह मन्दा है और जिसमें दूसरोंका हित है,
वह बढ़िया है । सीधी बात है,
लिख लो !
श्रोता‒अच्छे-अच्छे काम करते रहनेपर भी बीचमें जो तिरस्कार, अपमान
मिलता है, उस समय भी धीरज
रखते हुए उत्साहपूर्वक काममें लगे रहनेकी हिम्मत कैसे आये ?
स्वामीजी‒एक किसान खेती करता है,
पर पहलेका धान न होनेसे भूखा मरता है,
और एक किसान खेती करता ही नहीं,
पर पहलेका धान होनेसे खाता है । पहलेका बोया हुआ अभी खाता
है, और अभीका बोया हुआ आगे खायेगा । ऐसे ही अभी जो तिरस्कार,
अपमान मिलता है, यह पहलेका प्रारब्ध है । अभी जो अच्छा काम करते हैं,
उसका फल आगे मिलेगा ।
एक बहुत बढ़िया बात है ! जैसे,
अपने माता-पिताको कोई जान नहीं सकता;
परन्तु उनको मान सकता है । उनको माननेके सिवाय और कोई उपाय
है ही नहीं । माँको कैसे जानें ? क्योंकि जन्मके समय हमें होश ही नहीं था । पिताको कैसे
जानें ? क्योंकि उस समय हमारा जन्म ही नहीं हुआ था । लोग कहते हैं
कि ये तुम्हारे माता-पिता हैं तो हम सुनकर मान लेते हैं । माननेमें हमें सन्देह
नहीं रहता । ऐसे ही जितना संसार है, सब केवल भगवान्से पैदा हुआ है । उस भगवान्को हम जान नहीं
सकते, प्रत्युत सन्त-महात्मा,
वेद, शास्त्र, पुराण आदिसे सुनकर मान ही सकते हैं । जो सम्पूर्ण सृष्टिको
उत्पन्न करनेवाला है, उसको उत्पन्न होनेवाला कैसे जानेगा
?
जैसे माता-पिताको जान तो नहीं सकते,
पर माने बिना रह नहीं सकते,
ऐसे ही भगवान्को जान तो नहीं सकते,
पर माने बिना रह नहीं सकते । माना हुआ सच्चा है,
इसमें तिल-जितना भी सन्देह नहीं है । ऐसे परमपिता भगवान्को
आप अपना मान लो‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी । चेतन
अमल सहज सुख रासी ॥’ (मानस, उत्तर॰ ११७ । १); ‘ममैवांशो
जीवलोके’ (गीता १५ । ७) ।
गीताके अन्तमें भगवान्ने अर्जुनसे पूछा कि क्या तुमने
एकाग्रचित्तसे गीता सुनी ? और क्या तुम्हारा अज्ञानजनित मोह नष्ट हुआ
? तात्पर्य था कि गीता अगर
ठीक ध्यानसे सुने तो मोह नष्ट हो जाता है । अर्जुनने उत्तर दिया‒‘नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा
त्वत्प्रासादान्मयाच्युत’ (गीता
१८ । ७३) ‘हे अच्युत ! आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया है और मुझे स्मृति प्राप्त हो
गयी है ।’ यह ‘स्मृति’ क्या है‒यह बात मामूली नहीं है ! मेरेको सत्संग करते,
पुस्तकोंको पढ़ते कई वर्ष हो गये,
पर पता नहीं लगा कि ‘स्मृति’ का असली स्वरूप क्या है ? असली स्वरूप वह है,
जो अभी आपको बताया है ! यदि आप इसपर ध्यान दें तो आपको पता
लग जायगा कि स्मृति इसको कहते हैं ।
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