मनुष्यशरीर मिला है तो सच्चे हृदयसे उद्योग करते रहना
चाहिये, पर चिन्ता नहीं करनी चाहिये । चिन्तासे होनेवाला दुःख अपनी
मूर्खतासे होता है, प्रारब्धसे नहीं । गीताका आरम्भ ही चिन्ता मिटानेकी बातसे
हुआ है‒ ‘अशोच्यानन्वशोचस्त्वं.....’ (गीता
२ । ११) । अपना
कर्तव्य-कर्म करते रहो, पर चिन्ता मत करो । चिन्ता करनेसे कुछ भी लाभ नहीं होता,
आप मुफ्तमें ही दुःख पाते हो ! सब आदमी मिलकर धनकी चिन्ता
करें तो क्या एक कौड़ी भी पैदा हो जायगी ? इसलिये प्रारब्धकी बात केवल चिन्ता मिटानेके लिये है,
उद्योग न करनेके लिये कभी है ही नहीं.....है ही नहीं.....है
ही नहीं ! चिन्ता मिटानेके लिये ही सत्संग है । अगर
चिन्ता होती है तो आपने सत्संग ध्यान देकर सुना नहीं ।
‘करनेमें
सावधान और होनेमें प्रसन्न’‒यह छोटी-सी बात आप मान लो तो निहाल हो जाओगे,
आपकी चिन्ता मिट जायगी ! इसको लिख लो,
याद कर लो । जो होनेवाला है,
वह होकर ही रहेगा, फिर चिन्ता करनेसे क्या लाभ
?
सुनहु भरत भावी प्रबल
बिलखि कहेउ मुनिनाथ ।
हानि लाभु जीवनु मरनु
जसु अपजसु बिधि हाथ ॥
(मानस, अयोध्या॰ १७१)
‘मुनिनाथ वसिष्ठजीने दुःखी होकर कहा कि हे भरत
! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान् है । हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश‒ये सब विधाताके हाथमें हैं ।’
एक वर्ष अकाल पडनेपर क्या किसानलोग खेती करना छोड़ देते हैं
? व्यापारमें घाटा लगनेपर
क्या व्यापार करना छोड़ देते हैं ? व्यापारमें इतना ध्यान रखो कि कभी घाटा लगे तो कर्जा न हो ।
इतना खर्च नहीं करना चाहिये, जिससे सिरपर कर्जा हो जाय । कर्जा
बहुत खराब चीज है । रूखी रोटी खा ले, पर
कर्जा मत करे । इससे जीवन सुखी रहेगा । परन्तु कर्जा करनेवाला दुःखी होगा ही ।
मनमें हलचल, चिन्ता
होना प्रारब्ध नहीं है, प्रत्युत आपकी मूर्खता है । यह मूर्खता सत्संगसे
मिटाई जा सकती है । परन्तु
प्रारब्ध नहीं मिटेगा, वह तो आयेगा ही । प्रारब्धसे जीवन-निर्वाह होगा,
पर थोड़ा दुःख पाना पड़ेगा । काम करोगे तो सुगमतासे
जीवन-निर्वाह होगा । प्रारब्धमें होगा तो रोटी जरूर मिलेगी,
और प्रारब्धमें नहीं है तो अरबपतिको भी नहीं मिलेगी ! ऐसी
बीमारी हो जायगी कि डॉक्टर खाने नहीं देगा ! इसलिये करनेमें सावधान रहो और होनेमें
प्रसन्न रहो । जो हो रहा है, वह बहुत ठीक हो रहा है । बेठीक है ही नहीं । उसे बेठीक
मानना गलती है ।
आपके पास संसारकी जितनी चीजें हैं,
वे ऐश-आराम, शौकीनीके लिये नहीं हैं । उनसे निर्वाह करो और दूसरोंकी
सेवा करो । शौकीनी महान् पतन करनेवाली चीज है । उसके लिये धन इकट्ठा करोगे तो
महान् दुःख होगा, सन्ताप होगा । धनका खर्च बढ़िया है, धन
बढ़िया है ही नहीं ।
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