संसारका जो सुख आप चाहते हो,
उस सुखमें दुःख-ही-दुःख भरा हुआ है । उस सुखको आप छोड़ते
नहीं, दुःख आपको छोड़ता नहीं । विषभरे लड्डुओंको आप छोड़ते नहीं,
विष आपको छोड़ता नहीं ! जो
दूसरोंके सुखसे सुखी होता है,
उसका दुःख मिट जाता है । परन्तु जो अपना सुख
चाहता है, वह उतना ही दुःख भोगता है ।
परिवार-नियोजन, गर्भपात, नसबन्दी आदि सब शास्त्र-विरुद्ध,
प्रकृति-विरुद्ध काम हो रहे हैं । इनसे प्रकृति कुपित हो
रही है । सभी जीव-जन्तुओंको मारने-ही-मारनेकी तरफ दृष्टि हो रही है ! मनुष्योंको
मार सकते नहीं, इसलिये उनको जन्मने ही मत दो‒यह दृष्टि हो रही है ! खेतोंमें जहरका छिड़काव करते हैं कि अन्न
बहुत पैदा होगा । जीव तो मर जायँगे,
पर उस अन्नको खानेवालोंकी क्या दशा होगी‒यह सोचते ही नहीं ! परिणाममें सब जगह
जहर-ही-जहर फैल रहा है । नदियोंका जल दूषित हो गया है । अन्न और जल भी जहरीले हो
गये हैं । घास भी जहरीली हो गयी हे
? जानवरोंका मांस भी जहरीला हो गया है । इस कारण गीध भी बहुत
कम हो गये हैं । इतना ही नहीं, माँके दूधमें भी जहर आ गया है ! अन्न,
जल और हवा‒तीनोंमे जहर फैल रहा है । इसका नतीजा यह होगा कि जीना मुश्किल हो जायगा !
उल्टे कर्मोंका फल सुल्टा नहीं मिलेगा....नहीं मिलेगा....नहीं मिलेगा ! दुःख पा
रहे हैं, कष्ट उठा रहे हैं, फिर भी प्रचार जहरका ही कर रहे हैं ! परिवार-नियोजनको बड़ा आवश्यक मानते हैं, पर
इसका परिणाम देखना ! सन्ताप होगा, आफत आयेगी, दुःख
पाना पड़ेगा, रोना पड़ेगा ! घरोंमें लड़ाइयाँ होंगी, आपसमें
कलह होगी । हम भविष्यको जानते नहीं हैं,
पर चाल ऐसी है कि आपसमें बड़ी भारी मारकाट होगी
!!
जिन लोगोंने भजन-स्मरण किया है,
आध्यात्मिक विचार किया है,
उनको शान्ति मिली है । उनमें भी
दुःख आता है तो दुःख दूर करनेके लिये दुःख आता है । उसका परिणाम अच्छा होगा,
उनको शान्ति मिलेगी । पहले जो उल्टा काम किया है,
उसका फल दुःख मिलेगा । अब आप सुल्टा काम करो,
धर्मका पालन करो, पुण्यकर्म करो, भजन-स्मरण करो । आप कहोगे कि यह हमारे भाग्यमें नहीं है तो
यह भाग्यसे नहीं होता, प्रत्युत करनेसे होता है;
क्योंकि यह नया कर्म है । भाग्यसे रोटी मिलेगी,
धन मिलेगा, भोग मिलेगा ।
मनुष्योंका प्रायः यह भाव रहता है कि हमारे अनुकूल
परिस्थिति बन जाय, प्रतिकूल परिस्थिति न रहे । जो होता है,
वह प्रारब्धके अनुसार ही होता है । प्रारब्धसे इधर-उधर होता
ही नहीं । आप कितना ही उद्योग करें, जो होनेवाला है, वह होगा ही‒यह सिद्धान्त है । परन्तु अपना उद्योग कभी छोड़ना नहीं चाहिये ।
अच्छे कामके लिये अपना उद्योग करते रहना चाहिये,
पर चिन्ता नहीं करनी चाहिये । जो
होनेवाला है, वैसा ही होगा‒यह जो प्रारब्धकी बात कही जाती है, यह
चिन्ता दूर करनेके लिये है, अपना उद्योग छोड़नेके लिये नहीं ।
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