।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया, 
                 वि.सं.-२०७५, शुक्रवार
 अनन्तकी ओर     


श्रोता‒अब जीवन तो समाप्त हो चला ! थोड़ा-सा समय है । क्या इस समयमें हम अपना कल्याण कर सकते हैं ?

स्वामीजी‒जरूर कर सकते हैं । कल्याणके सिवाय हमारी कोई भी चाह न हो तो कल्याण जरूर हो जायगा । इसके लिये ज्यादा समयकी जरूरत नहीं है । भीतरका भाव कल्याणका होना चाहिये । आगे जितना समय बचा है, इसमें सिवाय भगवद्भजनके और हम कुछ नहीं करेंगे‒ऐसा विचार हो जाय तो जरूर कल्याण हो जायगा ।

श्रोता‒संसारकी वासनाका त्याग कैसे हो ?

स्वामीजी‒‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं त्याग कर नहीं सकता ! हे प्रभो ! मैं क्या करूँ !’ ऐसे आठों पहर भगवान्‌को पुकारो; त्याग हो जायगा ।

पूजन मनुष्यका नहीं, भगवान्‌का ही होना चाहिये । आरती करनी हो तो भगवान्‌की ही करो ।

एक परमात्मप्राप्तिका पक्‍का उद्देश्य बन जाय तो काम, क्रोध आदि सब दोष दूर हो जाते हैं । आपको कल्याणके योग्य समझकर ही भगवान्‌ने मनुष्यशरीर दिया है । यह अन्य योनियोंकी तरह नहीं है । अतः आपको अपने कल्याणका, परमात्मप्राप्तिका ही उद्देश्य रखना चाहिये । संसारमें कोई अफसर किसी मनुष्यको किसी कार्यपर नियुक्त करता है तो उसकी योग्यता देखकर करता है । क्या अपढ़ आदमीको कोई हेडमास्टर बना देगा ? जब मनुष्योंमें भी योग्यता देखकर ही पद दिया जाता है तो क्या भगवान् बिना योग्यताके मनुष्यजन्म दे देंगे ? क्या कोई आदमी कह सकता है कि मैंने अपनी मरजीसे यहाँ जन्म लिया है ? अतः आप सब-के-सब परमात्माको प्राप्त कर सकते हैं । ऐसी योग्यता आप सबमें है, तभी आपको मनुष्यशरीर मिला है ।


जब आपका उद्देश्य परमात्मप्राप्तिका हो जायगा, तब काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दोष नहीं रहेंगे । सब गुण अपने-आप आ जायँगे । ये दोष तो उनमें रहते हैं, जिनका उद्देश्य संसार है । मेरी समझसे भाई-बहन प्रायः बिना उद्देश्य चलते हैं ! घरसे तो निकल गये, पर कहाँ जाना है‒यह विचार नहीं है तो क्या दशा होगी ? किसीसे पूछें कि मार्ग बताओ । वह कहे कि कहाँका ? कहींका बता दो । तो फिर कहीं चले जाओ, मार्ग बतानेकी क्या जरूरत है ? अगर आपका उद्देश्य परमात्मप्राप्तिका बन जायगा तो आप तरह-तरहके कामोंमें उलझोगे नहीं । अगर उद्देश्य नहीं बनाओगे तो उलझते ही रहोगे ! मैं कितना बताऊँगा ! सत्संग करनेपर भी कल्याण तभी होगा, जब आप उद्देश्य बनाओगे । उद्देश्य बनानेपर हरेक कथा-सत्संगमें आप उलझोगे नहीं । जहाँ विशेष पारमार्थिक बात मिलेगी, वहीं सत्संग करोगे, और जगह उलझोगे नहीं । उद्देश्य बननेपर आपकी बुद्धि स्वतः शुद्ध होगी । आपको मार्ग स्वतः मिलेगा ।