श्रोता‒चुप
साधन अर्थात् ‘है’ में
स्थित होना भगवान्के सगुण-साकारके ध्यानसे बढ़कर है क्या ?
स्वामीजी‒मूलमें सगुण और निर्गुण दो चीज नहीं है ।
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें
।
जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ॥
(मानस, बाल॰ ११६ । १)
जैसे जल और बर्फ दो चीज नहीं है,
एक ही चीज है । देखनेमें दोनों अलग-अलग दीखते हैं,
पर तत्त्वसे दोनों एक जल ही हैं । ऐसे ही सगुण-निर्गुण तत्त्वसे
एक ही हैं । जिसमें आपकी रुचि हो, उसका ध्यान करो ।
मैंने पढ़ाई निर्गुण-निराकारकी की है,
इसलिये मेरी स्वाभाविक रुचि साकारकी कम और निराकारकी ज्यादा
है, इसलिये मैं निराकारकी बातें ज्यादा कहता हूँ । परन्तु साकार उससे कम नहीं है ।
जैसे मानना जाननेसे कमजोर नहीं है, ऐसे ही साकार निराकारसे कमजोर नहीं है । हमने माँ-बापको देखा
नहीं है, फिर भी उनको मानते हैं तो यह मानना कमजोर नहीं है;
क्योंकि अगर माँ-बाप नहीं हैं तो हम कहाँसे आये
?
तत्त्व एक ही है, चाहे उसको निराकार-रूपसे कहो,
चाहे साकार-रूपसे कहो । इनमें कोई बढ़िया-घटिया नहीं है । परन्तु
ध्यान करनेवालेको एकका ही ध्यान करना चाहिये;
क्योंकि दोका ध्यान करनेसे निष्ठा नहीं बनती । कुछ सम्प्रदायोंमें,
साधुओंमें यह बात प्रचलित है कि निर्गुण मायारहित है और सगुण
मायामय है; परन्तु मैं इस बातको नहीं मानता । यह बात मेरेको बिल्कुल नहीं
जँचती ।
मैं परमात्माके तीन रूप मानता हूँ‒सगुण-निराकार,
सगुण-साकार और निर्गुण-निराकार । अगर ‘साकार-निराकार’ की दृष्टिसे कहा जाय तो साकार एक ही प्रकारका (सगुण-साकार) है,
पर निराकार दो प्रकारका है‒ सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकार
। अगर ‘सगुण-निर्गुण’ की दृष्टिसे कहा जाय तो सगुण दो प्रकारका है‒ सगुण-साकार और
सगुण-निराकार, पर निर्गुण एक ही प्रकारका (निर्गुण-निराकार) है । इनको आप ठीक
तरहसे समझ लें, याद कर लें । परमात्माके तीनों रूपोंमें किसीका भी ध्यान करो,
कोई भी कम-ज्यादा नहीं है । एक ही तत्त्व साकार भी है,
निराकार भी है, सगुण भी है, निर्गुण भी है । यह प्रत्यक्ष दीखनेवाला संसार भी भगवत्स्वरूप
ही है‒ ‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता
७ । १९) ।
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