प्रत्येक क्रिया ‘है’-पनेसे ही आरम्भ होती है और ‘है’-पनेमें ही लीन होती हैं‒ऐसा समझकर आप ‘है’ में स्थित हो जाओ । फिर ‘है’-पना नित्य रहेगा, क्रिया नित्य नहीं रहेगी । क्रियामें थकावट होती है,
पर ‘है’ में थकावट होती ही नहीं ।
बोलनेमें दो आदमी भी बराबर नहीं होते,
पर नहीं बोलनेमें सब एक होते हैं । विद्वान्-से-विद्वान् हो
अथवा मूर्ख-से-मूर्ख हो, न बोलनेमें उनमें क्या फर्क है
? क्रियारहित अवस्था सबकी अवस्था
है । इसलिये आप सब कामोंके बिना रह सकते हो,
पर नींदके बिना नहीं रह सकते;
क्योंकि नींदमें ही आपको विश्राम मिलता है । नींद लेनेसे आपको
काम करनेकी शक्ति मिलती है । अतः निष्क्रिय होनेसे शक्तिका संचय होता है और क्रियासे
शक्ति क्षीण होती है । करनेकी, जाननेकी, समझनेकी, अनेक
आविष्कारोंकी, विज्ञानकी, जितनी
भी शक्तियाँ हैं, वे सब-की-सब शक्तियाँ निष्क्रिय-तत्त्वमें हैं और
उसीसे पैदा होती हैं ।
आप सब ‘है’ में स्थित हो जायँ । परमात्मा कैसे
हैं, कहाँ रहते हैं, क्या
करते हैं, किधर देखते हैं, क्या
खाते हैं, क्या पीते है‒इन बातोंको जाननेकी जरूरत नहीं है ।
परमात्मा ‘है’‒इसके सिवाय कुछ नहीं जानना है ।
परमात्मा ‘है’‒यह मानना बहुत आवश्यक है । माता-पिताको आप जान सकते ही नहीं,
मान ही सकते हैं । जैसे,
माँसे पैदा होते समय आपकी (शरीरकी) सत्ता तो थी,
पर होश नहीं था । परन्तु पिताके समय आपकी सत्ता थी ही नहीं,
आप पीछे पैदा हुए । इसी तरह ईश्वरके समय जगत् था ही नहीं ।
जगत् पीछे पैदा हुआ‒‘एकोऽहं बहुःस्याम्’,
फिर वह ईश्वरको कैसे जाने
? ईश्वर संसारके परमपिता हैं‒‘अहं बीजप्रदः पिता’ (गीता
१४ । ४) । जैसे माँ-बापके होनेमें हमारा शरीर प्रमाण है, ऐसे
ही ईश्वर (‘है’)-के होनेमें हमारी सत्ता (जीवात्मा) प्रमाण है । इसलिये ‘ईश्वर है’‒इतना मान लो । यह बात वेदान्तके आचार्यतकके ग्रन्थोंमें नहीं
आती ! उनमें जगत्, जीव और परमात्मा‒तीनोंको जाननेकी बात आती है,
जबकि परमात्मा जाननेका विषय है ही नहीं ! उनको जाननेकी शक्ति
किसीमें नहीं है । भगवान् कहते हैं‒
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥
(गीता १० । २)
‘मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि; क्योंकि मैं सब प्रकारसे देवताओंका और महर्षियोंका आदि हूँ ।’
‘सोइ
जानइ जेहि देहु जनाई’ (मानस,
अयोध्या॰ १२७ । २)‒यह जानना भी वास्तवमें मानना ही है । परन्तु मानना भी जाननेसे कमजोर नहीं है,
प्रत्युत तेज है ।
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