।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.-२०७५, शुक्रवार
शरणागति
                                                             

 

(२) निर्भय होनाआचरणोंकी कमी होनेसे भीतरसे भय पैदा होता है और साँप, बिच्छू, बाघ आदिसे बाहरसे भय पैदा होता है । शरणागत भक्तके ये दोनों ही प्रकारके भय मिट जाते हैं । इतना ही नहीं, पतंजलि महाराजने जिस मृत्युके भयको पाँचवाँ क्लेश माना है और जो बड़े-बड़े विद्वानोंको भी होता है, वह भय भी सर्वथा मिट जाता है ।

        अब मेरी वृत्तियाँ खराब हो जायँगीऐसा भयका भाव भी साधकको भीतरसे निकाल देना चाहिये; क्योंकि ‘मैं भगवान्‌की कृपामें तरान्तर हो गया हूँ, अब मेरेको किसी बातका भय नहीं है । इन वृत्तियोंको मेरी माननेसे ही मैं इनको शुद्ध नहीं कर सका; क्योंकि इनको मेरी मानना ही मलिनता है‘ममता मल जरि जाइ’ (मानस ७/११७ क) इस वास्ते अब मैं कभी भी इनको मेरा नहीं मानूँगा । जब वृत्तियाँ मेरी हैं ही नहीं तो मेरेको भय किस बातका ? अब तो केवल भगवान्‌की कृपा-ही-कृपा है ! भगवान्‌की कृपा ही सर्वत्र परिपूर्ण हो रही है । यह बड़ी खुशीकी, प्रसन्नताकी बात है ।’

        लोग ऐसी शंका करते हैं कि भगवान्‌के शरण होकर उनका भजन करनेसे तो द्वैत हो जायगा अर्थात् भगवान्‌ और भक्तये दो हो जायँगे और दूसरेसे भय होता है‘द्वितियाद्वै भयं भवति’ । पर यह शंका निराधार है । भय द्वितीयसे तो होता है, पर आत्मीयसे भय नहीं होता अर्थात् भय दूसरेसे होता है, अपनेसे नहीं । प्रकृति और प्रकृतिका कार्य शरीर-संसार द्वितीय है, इस वास्ते इनसे सम्बन्ध रखनेपर ही भय होता ही; क्योंकि इनके साथ सदा सम्बन्ध रह ही नहीं सकता । कारण यह है कि प्रकृति और पुरुषका स्वभाव भिन्न-भिन्न है; जैसे एक जड़ है और एक चेतन; एक विकारी है और एक निर्विकार; एक परिवर्तनशील है और एक अपरिवर्तनशील; एक प्रकाश्य है और एक प्रकाशक इत्यादि ।

         भगवान्‌ द्वितीय नहीं हैं । वे तो आत्मीय हैं; क्योंकि जीव उनका सनातन अंश है, उनका स्वरूप है । इस वास्ते भगवान्‌के शरण होनेपर उनसे भय कैसे हो सकता है ? प्रत्युत उनके शरण होनेपर मनुष्य सदाके लिये अभय हो जाता है । स्थूल द्रष्टिसे देखा जाय तो बच्‍चेको माँसे दूर रहनेपर तो भय होता है, पर माँकी गोदीमें चले जानेपर उसका भय मिट जाता है; क्योंकि माँ अपनी है । भगवान्‌का भक्त इससे भी विलक्षण होता है । कारण कि बच्‍चे और माँमें तो भेदभाव दीखता है, पर भक्त और भगवान्‌में भेदभाव सम्भव ही नहीं है ।