यह शरणागत भक्तका लक्षण है । यह तो उन संतोंने कर दिया; पर आपलोगोंसे यह कहना
है कि कहीं नौका डूबने लगे तो उसमें पानी तो नहीं भरना, परन्तु रोना बिलकुल नहीं ।
यही समझना कि बहुत ठीक है, बड़ी मौजकी, बड़े आनन्दकी बात
है; इसमें भी कोई छिपा हुआ मंगल है । हमने ऐसी भी एक बात सुनी है । एक
संतोंका आश्रम है, उसी आश्रमकी बात कई वर्षों पहलेकी सुनी है । वहाँके महन्त थे,
बड़े अच्छे थे, बहुत विद्वान् और भगवान्के बड़े भक्त थे । एक बार गंगाजी बहुत बढ़
गयीं । पहाड़से पानीका प्रवाह आया बहुत जोरसे । आश्रमके पीछे ऐसे बड़े जोरसे पानीका
नाला आया कि मानो मकानको काटकर बहा ही देगा । उस समय जो वहाँके बड़े महन्त थे, उनका
नाम याद नहीं रहा, बहुत खुश हो गये, प्रसन्न हो गये और गद्गद हो गये कि अब मैयाकी गोदमें जायेंगे–मतलब, गंगाजीमें
जायँगे । दूसरे जितने थे, घबरा रहे थे कि मकान बह जायगा और वे खुश हो रहे थे । हुआ
क्या ? पानीका नाला आया और साथमें पत्थर-ही-पत्थर आकर पत्थरोंका ढेर लग गया । तब
पानी एक ओरसे निकलने लगा और मकान बच गया ।
बच गया तो बच गया । उन संतोंके हृदयमें तो यही भाव हुआ कि मैयाकी गोदमें जायँगे । विचार
कीजिये, माँकी गोदमें बच्चेको आनन्द आता है कि दुःख होता है ? उनको यही
खुशी थी । प्रत्यक्ष
बात तो डूबनेकी थी कि इतना पानीका प्रवाह बढ़ा आ रहा है; किंतु इन्हें खुशी हो रही
है । इससे सिद्ध क्या हुआ ? करनेमें तो भगवान्की आज्ञा,
इशारेके अनुसार करना है और होनेमें हरदम प्रसन्न रहना है । चाहे सुख आये चाहे
दुःख, जो घटना घटे, उसमें खुश रहना है; क्योंकि जो होना है वह तो सब-का-सब भगवान्के
हाथमें हैं और करना हमारे हाथमें है । अतः करना सब भगवान्की आज्ञासे । होनेके
नामपर जो होये उसमें खुश हो कि वाह ! वाह !! प्रभुकी बड़ी कृपा है । जो हो रहा है,
उसमें यह नहीं देखना कि यह ठीक है, यह बेठीक है । बल्कि यह देखे कि यह कर कौन रहा है,
यह किसके हुक्मसे, किसके इशारेसे हो रहा है । ‘करी
गोपालकी सब होइ ।’
जो दुःख आता है, दर्द होता है, उसमें भगवान्की
विशेष कृपा है । दर्द, दुःख, प्रतिकूलता–यह पापोंका फल है कि पुण्यका ? पापोंका फल
मानते हैं तो फल भोगनेसे पाप रहेंगे कि नष्ट होंगे ? एवं पाप नष्ट होना भगवान्की
कृपा है या अकृपा है ? शुद्धि हो रही है, भगवान् कृपा कर रहे हैं–ऐसा विचारकर
मस्त होता रहे । ज्यों टीस चले, ज्यों पीड़ा हो, त्यों अनुभव हो कि भगवान्की बड़ी
कृपा है । प्रभु बड़ी कृपा कर रहे हैं–पवित्र बना रहे हैं । सुनार सोनेको अपनाता है तो उसको खूब तपाता है और पिटता है,
खराबी-खराबी निकाल देता है । इसका अर्थ यह होता है कि अब वह अपनायेगा । इसी तरह प्रभुने हमको अपना लिया तो अब अपनी वस्तुको साफ कर रहे हैं,
अतः अपनेको मस्त होना चाहिये ।
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